शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

नदी

 

भीकम सिंह

 

नदी  - 13

 


कुछ पहाड़
 

बहुत-सी नदियाँ 

वक्त के साथ 

ठोकरें खाते रहे 

गाँव- जवार

तमाशा बने रहे 

शहर सभी 

ऊँचे-ऊँचे उठके 

हवा के साथ 

बनाने लगे बात 

घुमा-घुमाके  हाथ ।

 

नदी  - 14

 

आजकल में 

गंगा पे होने लगी 

बिना बात के 

ये बात कैसी- कैसी 

हस्तिनापुर

करता खुलेआम 

ऐसी की तैसी 

नमामि गंगे से भी 

सुधरे नहीं

नालों की जात ऐसी

गंगा, वैसी की वैसी 

 

नदी  - 15

 

बीहड़ नदी 

पहाड़ से निकली 

आवेग में ज्यों 

पानी का वेग खोला

तटों के गिरे

सारे गठरी-झोला 

पेड़ों ने कुछ 

सँभाले फटे-टूटे 

कुछ को रोका 

लग्गी लगा-लगाके 

खड़े मान बचाके 

 

नदी- 16

 

नदी खुद को 

आज और कल में 

गँवाती रही 

नालों के दिये जख़्म

छिपाती रही 

बारिशों में  नहाके

जीने के पल

सागर को मगर

दिखाती रही 

वो सौन्दर्य अपना 

झूठ बोले कितना 

 

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर सदैव की भाँति आपके चोका ।बधाई सर।

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  2. सुंदर सार्थक चोका! हार्दिक बधाई आ. भीकम सिंह जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  3. नदियों के मन की बात आपसे अच्छा कौन लिख सकता है सर। आपके अच्छे एवं उत्कृष्ट ताँका, चोका इत्यादि का बहुत उत्सुकता से इंतेज़ार रहता है। आपको उत्कृष्ट चोका लिखने के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

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  4. सुन्दर और भावपूर्ण चोका के लिए हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी.

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  5. नदी के माध्यम से समकालीन परिस्थितियों का बहुत सुंदर चित्रण, हार्दिक बधाई।--परमजीत कौर 'रीत'

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  6. बहुत प्रभावी चोका,नदी के विषय मे हाइकु हों या ताँका,चोका.. भीकम सिंह जी से बेहतर अभी तक मेरी दृष्टि में नही आए।भीकम सिंह जी नदियों से बात करते हैं,उनके उल्लास या उनकी पीड़ा को स्वर देते हैं।बधाई डॉ. भीकम सिंह जी।

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  7. अत्यंत प्रभावी, सुंदर भावपूर्णसृजन 🌹🙏... नदी की आत्मव्यथा को स्पर्श कर इसके स्वर को जीवंत करने हेतु आपको हृदय से धन्यवाद सर 🙏🌹

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  8. शब्दों में जीवन की विस्तृत प्रस्तुति है

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  9. अमित कुमार अग्रवाल

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  10. भीकम सिंह जी की लेखनी - सृजित , 'नदी' पर खूबसूरत चोका । आप जापानी छ॔द रचने में माहिर हैं 👏👏 हार्दिक बधाई ।

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  11. मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और आप सभी की खूबसूरत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार ।

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  12. नदी पर कितने सुन्दर चोका रच दिए आपने, बहुत बधाई

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