गुरुवार, 3 अगस्त 2023

1130-बिछड़े खेत

डॉजेन्नी शबनम 

 


खेत बेचारे

एक दूजे को देखें

दुख सुनाएँ

भाई-भाई से वे थे 

सटे-सटे-से

मेड़ से जुड़े हुए,

बिछड़े खेत

बिक गए जो खेत

वे रोते रहे

मेड़ बना बाउंड्री 

कंक्रीट बिछे

खेत से उपजेंगे 

बहुमंज़िला 

पत्थर-से मकान,

खेत के अन्न

शहर ने निगले

बदले दिए

कंक्रीट के जंगल,

खेत का दर्द

कोई  समझता

धन की माया

समझे सरमाया,

खेत-किसान

बेबस  लाचार

हो रहे खत्म

अन्नखेतकिसान

खेत  बचा

अन्न कहाँ उपजे?

कौन क्या खाए?

 सरमायादार 

अब तू पत्थर खा। 

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  2. ओ सरमायादार
    अब तू पत्थर खा। बहुत खूब। यथार्थ का चित्रण करता सुंदर चोका। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

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  3. बहुत सुंदर, सार्थक चोका। बधाई जेन्नी जी

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  4. मेरी लेखनी को आप सभी का स्नेह मिला, हृदय से आभारी हूँ।

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  5. बहुत बढ़िया चोका
    हार्दिक बधाई जेन्नी जी

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