गुरुवार, 12 अक्टूबर 2023

1142

 

विडम्बना

प्रीति अग्रवाल

 

 चाह अगर

सुख की अनुभूति

उतर जाओ

दुःख की तलहटी

मौन-गरिमा

जानना 'गर चाहो

शोर के मध्य

कुछ वक्त बिताओ

जीवन साथी

परखना जो चाहो

विरह-अग्नि

दूरियाँ आज़माओ

विचित्र- सी है

जीवन- विडंबना

जो कुछ चाहो

उससे विपरीत

चखते जाओ

प्रकृति के नियम

रचे किसने

समय न गँवाओ

सिर झुकाते जाओ!!

-0-

 

 


9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया। हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर चौंका हार्दिक बधाई।
    सादर
    सुरभि डागर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर, सही संदेश देता चोका!

    ~सादर
    अनिता ललित

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर चोका... हार्दिक बधाई प्रीति।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर चोका प्रीति । अंत में ठीक कहा बस सर झुकाते जाओ। बधाई हो। अनेक शुभकामनाएँ। सविता अग्रवाल “सवि”

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. पत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीय भाई साहब का हार्दिक आभार!
    भीकम सिंह जी, सुदर्शन दी, सुरभि जी, अनिता जी, कृष्णा जी एवं सविता जी , आपकी स्नेहिल टिप्पणियां मेरी लेखनी को बल प्रदान करती हैं आप सभी का हार्दिक धन्यवाद।,

    जवाब देंहटाएं