शनिवार, 21 अक्टूबर 2023

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 वक़्त

 प्रीति अग्रवाल



ऐसी क्या जल्दी
दो पल तो ठहर
उतरने दे
मखमली पलों को
मन्द गति से
बेकल हृदय की
तलहटी में
आत्मसात हो जाए
मरुस्थल में
अविराम बहती
प्रेम की गंगा
वक्त की बागडोर
फिसली जाए
हाथ जोड़ूँ मनाऊँ
हम बेचारे
चंद पल हमारे
बस तेरे सहारे!
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