गुरुवार, 9 नवंबर 2023

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सचेन का डर

भीकम सिंह 

 


      यह घना जंगल, नीला - नीला आसमानअनजान अनसुने पक्षियों का कलरव, पाखोला हैंगिंग ब्रिज का कंपन, तुरई की बेल जैसी बेल पर खिलखिलाकर हँसता स्क्वैशतून , महोगनी, ओखर के पेड़, पौधे, अंकुर.....सभी के अपने शब्द, आनन्द, कोलाहल । बस एक टुकड़ा जमीन ही दिखाई दी थी हमें टैंट लगाने के लिए, हम आसमान का रुख देखकर आनन्दित हो उठे। यह हमारा सिक्किम गोचा- ला ट्रैक का पहला कैम्प 'सचेन' है 

   सचेन के ऊपरी छोर पर कंचनजंघा अभ्यारण्य की जानकारी हुई, तो  जंगली जानवरों की आशंका हुई । जंगली जानवरों को भी कोई रोक सका है ? किन्तु ट्रैकर भी हठीले भैंसे की तरह अपने अरमानों को पूरा करने के लिए निरंतर जोखिम उठाते रहते हैं । डरावनी बात आते- आते कई बार अन्दर ही ठहर गई, परन्तु मैं हार नहीं माना । मैंने गाइड से पूछ ही लिया, " यदि रात में टागर आ जा तो ?"

     मेरे चेहरे के डर को देखकर गाइड हँसा, फिर बोला,  "सर ! आपका टैंट टागर की बस्ती से कुछ ही दूरी पर लगा है। टैंट के बाहर खड़े होने से टागर दिख जाता है,परन्तु शरारती नटखट बच्चे की तरह थोड़ा डराकर खुद- बखुद अपने रास्ते चला जाता हैसिक्किम में किसी ने उसे शत्रु नहीं माना ।

रात भर मैं सो नहीं पायाबेशुमार आशंकाए उठती रहीं । कहीं टागर वाकई न आ जा। ठिठुरन भरी हवा से रह रहकर सिहर उठता। शरीर में थकावट से ताकत नहीं बची, चाँद अपनी जगह टिका है, सूर्य कब दिखला देगा, पेड़ काले- काले होकर घिरे खड़े हैं। मैं टैंट में ही बीच बीच में टॉर्च का बटन दबा देता हूँ । तभी बराबर वाले टैंट से बातचीत सुनाई दी,  मैंने टॉर्च स्थायी रूप से बुझा दी। स्लीपिंग बैग से निकलकर संजीव वर्मा ने कहा, ‘‘सवेरा हो गया भाई साहब! "

    थोड़ी देर में चाय आ गई।  चाय की चुस्की लेते हुए मैं बोला,  " सचेन का डर बड़ा था ,हमेशा याद रहेगा ।

                नींद मुकरे 

           जब डर को खोंसे 

                 रात उतरे ।

 

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7 टिप्‍पणियां:

  1. मेरा हाइबन प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार।

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  2. बहुत सुन्दर हाइबन। बधाई भीकम सिंह जी।

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