बुधवार, 12 अक्टूबर 2011

बिखरा मन


डॉ0अनीता कपू
1
 डँसता रहा 
 अतीत अब तक
परछाई-सा
कराहती जिन्दगी 
फसाना बन गई
  
2
बिखरा मन
सर्द-सी हुई सोच
बिखरा तन
सर्द-सी हुई देह
आसमान गीला था
      

डॉ अनीता कपूर 
फ्रीमोंट सिटी ( यू. एस. ए)

3 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द में भीगे बहुत सुंदर तांका हैं बहुत बहुत बधाई
    सादर
    अमिता कौंडल

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  2. बहुत मार्मिक तांका .....बहुत-बहुत बधाई ...
    डा. रमा द्विवेदी

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