गुरुवार, 29 मार्च 2012

रेत पे लिखा नाम


डॉ उर्मिला अग्रवाल
1
सागर तीरे
रेत पे लिखा नाम
लहर आई
और लौट भी गई
मिटे सब निशान  ।

2
सूख गया है
ख़ुशियों का सागर
दु:ख ही दु:ख
उग आए हैं अब
खर-पतवार-से ।
3
तेरे स्पर्श में
लहराए विषैले
सर्प इतने
कि विषैली हो गई
गंगा मेरे मन की ।
4
वश नहीं था
बिखर जाने पर
और तुमने
समेटा नहीं, किया-
नियति के हवाले ।

5
 कभी निष्कम्प
कभी कँपकँपाती
दीपक की लौ
कितनी समानता!
ज़िन्दगी से इसकी ।

6
क्यों ज़रूरी है
ज़िन्दगी में हमेशा
दर्द का होना
जी नहीं सकते क्या
कभी खुशी के साथ ।
7
बहुत दिया
ज़िन्दगी तूने मुझे
मुस्कान भी दी
आँसू भी प्यार भी औ
कभी नफ़रत भी ।
8
रेत पे लिखा
लहर ने मिटाया
मन पे लिखा
कोई मिटा न पाया
तेरी जफ़ा भी नहीं ।
9
भूला-भटका
एक बादल आया
छिड़का जल
देख के भूमि प्यासी
और रीता हो गया ।
10
धुला-धुला -सा
दिख रहा है चाँद
शायद आज
किसी समन्दर में
नहा के निकला है ।
-0-

8 टिप्‍पणियां:

  1. क्यों ज़रूरी है
    ज़िन्दगी में हमेशा
    दर्द का होना
    जी नहीं सकते क्या
    कभी खुशी के साथ ।

    बहुत खूब ...सभी रचनाएँ अच्छी लगीं

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  2. सभी तांका सार्थक और सारगर्भित-५ और ६ बहुत अच्छे लगे,बधाई!

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  3. सभी ताँका बहुत सुन्दर एवं भाव पूर्ण हैं .....!

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  4. वश नहीं था

    बिखर जाने पर

    और तुमने

    समेटा नहीं, किया-

    नियति के हवाले ।



    रेत पे लिखा

    लहर ने मिटाया

    मन पे लिखा

    कोई मिटा न पाया

    तेरी जफ़ा भी नहीं

    बहुत खूब लिखा है उर्मिला जी हार्दिक बधाई

    अमिता कौंडल

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  5. सभी ताँका अर्थपूर्ण बहुत मन भाए....बधाई।
    कृष्णा वर्मा

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  6. वश नहीं था
    बिखर जाने पर
    और तुमने
    समेटा नहीं, किया-
    नियति के हवाले ।
    बहुत भावपूर्ण लगे सभी ताँके...बधाई...।

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  7. सागर तीरे
    रेत पे लिखा नाम
    लहर आई
    और लौट भी गई
    मिटे सब निशान ।

    Bahut khub!bahut2 badhai sabhi tankaa bahut khubsurat hain,bhavpurn hain.

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