शनिवार, 24 मार्च 2012

मैं मृ्ण्मयी


ज्योत्स्ना शर्मा
1
फूलों से सुना
कलियों को बताया
मैंने भी यहाँ
जीवन -गीत गाया
प्रत्यहं दोहराया ।
2
निशा ने कहा
भोर द्वारे सजा
निराशा नहीं
तारक आशा के हैं
चाँद आये न आ
3
सूरज कहे
ऐसा कर दिखाओ
व्याकुल -मना
वीथियाँ हों व्यथित
कभी तुम ना आओ ।
4.
कविता मेरी 
बस तेरा वन्दन
तप्त पन्थ हों
तप्त पथिक मन
सुखदायी चन्दन 
5.
मैं मृण्मयी हूँ 
नेह से गूँथ कर
तुमने रचा 
अपना या पराया 
अब क्या मेरा बचा 
6 .
तुम भी जानो 
ईर्ष्या विष की ज्वाला 
फिर क्यूँ भला 
नफ़रत को पाला
प्यार को न सँभाला
-0-
प्रत्यहं= प्रतिदिन   
( प्रस्तुति:- डॉ हरदीप कौर सन्धु)

11 टिप्‍पणियां:

  1. निशा ने कहा
    भोर द्वारे सजाए
    निराशा नहीं
    तारक आशा के हैं
    चाँद आये न आए ।
    बहुत खूब।
    कृष्णा वर्मा

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  2. उत्तर
    1. hriday se aabhaaree hun aapaki ....aadarneey induravisinghj ji , hridayanubhuti ,डॉ. जेन्नी शबनम ji ,वन्दना ji evam कृष्णा वर्मा ji ...!

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  3. वाह .... सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक ... आशा का संचार करती हुई अच्छी प्रस्तुति

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  4. सभी तांका बहुत पसंद आए ...
    मैं मृण्मयी हूँ
    नेह से गूँथ कर
    तुमने रचा
    अपना या पराया
    अब क्या मेरा बचा

    यह विशेष रूप से ...

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  5. भावों के साथ शाब्दिक प्रवाह भी अच्छा बन पड़ा है!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ज्योत्स्ना शर्मा11 अप्रैल 2012 को 11:45 am बजे

      हार्दिक धन्यवाद .....आदरणीय उमेश महादोषी जी,कही अनकही ,एवम संगीता स्वरूप (गीत ) जी....आपके सराहना भरे शब्द मेरी प्रेरणा हैं....!

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