गुरुवार, 31 मई 2012

वो दो आँखें


तुहिना रंजन
1
कुछ असीम 
कुछ सीमा तक था 
प्रेम बरसा
बादल थमा रहा
भीगा -सा तरसा- सा   
2
नदी उमड़ी
बाँध तोड़ चुकी थी
तट तड़पा
बाहों में भरने को 
मिलन मधुर था


3
अनसुलझी
अजब पहेली -सी 
उसकी आँखें
कुछ कहना चाहें 
झिझकें, झुक जाएँ ।
 4
दिल का कोना 
कैसे वो दिखलाएँ
हाँ छुपा है 
एक अँधेरा सच
अपने ही सायों का
 5
 देखा तुमने?
सिसकियाँ दबातीं
आह छुपातीं
फिर भी भर आतीं 
उसकी वो दो आँखें
-0-

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खूबसूरत तांका! पढ़कर आनंद आ गया! बधाई तुहिना रंजन जी !

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  2. दिल का कोना
    कैसे वो दिखलाए
    जहाँ छुपा है
    एक अँधेरा सच
    अपने ही सायों का।
    बहुत खूब।
    सभी ताँका बहुत सुन्दर भाव...बधाई हो।
    कृष्णा वर्मा

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  3. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  4. सभी तांका एक से बढ़कर एक हैं बहुत भावपूर्ण

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  5. दिल का कोना
    कैसे वो दिखलाएँ
    जहाँ छुपा है
    एक अँधेरा सच
    अपने ही सायों का ।
    bahut bhavon bhara sunder tanka
    badhai
    rachana

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  6. दिल का कोना
    कैसे वो दिखलाए
    जहाँ छुपा है
    एक अँधेरा सच
    अपने ही सायों का।

    देखा तुमने?
    सिसकियाँ दबातीं
    आह छुपातीं
    फिर भी भर आतीं
    उसकी वो दो आँखें ।

    बहुत खूब...बधाई...|

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