गुरुवार, 31 मई 2012

सागर तुम

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा


1
सागर तुम
उसमें प्रीत थोडी़
मेरी मिलाओ
चलो इस धरा को
मधुमय बनाओ

2
काँकर हुई
नींव में आज डालो
इन्सानियत
ऊपर भी उठा लो
तुम जगमगा लो
-0-

5 टिप्‍पणियां:

  1. पहला तांका तो बहुत ही खूबसूरत लगा! सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई डॉ ज्योत्स्ना शर्मा !

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  2. ईश्वर हो या प्रियतम उससे बड़ा रंगरेज कौन... बहुत मोहक...

    रंगरेज़ रे
    ज़रा मेरी तो सुनो
    सबको रंगो
    अपने ही रंग में
    तुम मुझमें रंगो ।

    शुभकामनाएँ.

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  3. सागर तुम
    उसमें प्रीत थोडी़
    मेरी मिलाओ
    चलो इस धरा को
    धुमय बनाओ ।
    बहुत सुन्दर।
    कृष्णा वर्मा

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