रविवार, 17 जून 2012

बसी सीख मन में


पिता को समर्पित पाँच ताँका  ( पितृ-दिवस के अवसर पर)
सुशीला शिवराण
1
तेरा अँगना
मेरी नन्हीं दुनिया
बसी मुझमें
खोल ह्रदय-पट
लेती झाँक जिसमें ।
2
बाबुल मेरे
तेरा लाड़-दुलार
अनुशासन
जब भी बिखरती
लेता मुझे सँभार ।
3
भोर की जाग
श्रम,श्रद्धा, सम्मान
स्वदेश
-प्रेम
ऐसे दिए संस्कार
सफलता के द्वार ।
4
निर्भय बनो
चलो आदर्शों पर
रुणा मन में
सिखाते यही पिता
बसी सीख मन में

5
फ़ौज़ की बातें
कुर्बानी की गाथाएँ
वो काली रातें
उजली ममता से
पिता देव-तुल्य
- से
-0-

11 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ देर पहले मेरठ से डॉ सुधा गुप्ता जी का फोन आया था । उन्होने आज के आपके ताँका पर विशेष चर्चा की । सभी ताँका उन्हें पसन्द आए , इस ताँका का विशेष उल्लेख किया . अपने पिता के सन्दर्भ में ।
    भोर की जाग
    श्रम,श्रद्धा, सम्मान
    स्वदेश-प्रेम
    ऐसे दिए संस्कार
    सफलता के द्वार ।

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  2. सभी ताँका बहुत भावपूर्ण. पितृ-दिवस की शुभकामनाएँ.

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  3. ताँका पसन्द करने के लिए आप सबका हार्दिक आभार - डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) जी,
    डॉ सुधा गुप्ता जी, डॉ. जेन्नी शबनम और संगीता स्वरूप जी। अपना स्नेह यूँ ही बनाए रखें।
    हार्दिक आभार।

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  4. बहुत भावपूर्ण सभी सुन्दर ताँका सुशीला जी को बधाई।
    कृष्णा वर्मा

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  5. फ़ौज़ की बातें
    कुर्बानी की गाथाएँ
    वो काली रातें
    उजली ममता से
    पिता देव-तुल्य- से
    bahut hi sunder ek tajgi liye sunder tanka
    rachana

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  6. Sabhi taakan bahut prbhaavshaali hain pitr prem puut2kar baha raha hai hardik badhai..

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  7. मैं आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ डॉ भावना, रचना जी और कृष्‍णा जी! ऐसी प्रतिक्रियाएँ रचनाकार में नई ऊर्जा का संचार कर उसे बेहतर लिखने को प्रेरित करती हैं।
    पुन: आभार।

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  8. पिता को समर्पित सभी तांका बहुत अच्छे लगे...मेरी बधाई...।

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  9. सभी तांका बहुत सुंदर हैं पर यह मन को छू गया.

    भोर की जाग
    श्रम,श्रद्धा, सम्मान
    स्वदेश-प्रेम
    ऐसे दिए संस्कार
    सफलता के द्वार ।

    पिता का मागदर्शन हर बाधा में सहारा बनता है.

    सादर,

    अमिता कौंडल

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