सोमवार, 24 सितंबर 2012

जब -जब परखा (सेदोका)


मंजु मिश्रा
1
कहाँ हो कान्हा 
अब आ भी जाओ ना
काटे न कटें दु:ख,
इस धरा के 
अब तुम्हारे बिना
ले ही लो अवतार 
2
मैंने तुमको 
जब -जब परखा -
तुम  निकले काँच,
दोष ये मेरा
या फिर  था  तुम्हारा
कि तुम हीरा न थे  ।
3
आओ कर दूँ
सुबह और शाम
सब तुम्हारे नाम,
फिर  बनाएँ
सपनों की  तस्वीर  
नाम रखें  ज़िंदगी   
4
कुछ सपने 
घूँट भर ज़िंदगी 
एक दिलदो आँसू,
बस हो गई 
प्यार की शुरुआत
अंजाम ख़ुदा जाने 
5
आ समेट लूँ  
अपनी निगाहों में 
फिर  कहीं भी रहे, 
मेरा रहेगा 
धड़केगा साँस- सा 
मेरी धड़कनों में 
6
मै और तुम
नदिया के किनारे
साथ चलेंगे सदा,
रहेंगे दोनों
एक दूजे से दूर
नियति जो ठहरी  !
7
मै आईना हूँ 
मुझमे झाँकोगे तो 
ख़ुद को ही पाओगे,
जो भी करना 
सोच -समझकर ,
छुप नहीं पाओगे ।
-0-

6 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने तुमको
    जब -जब परखा -
    तुम निकले काँच,
    दोष ये मेरा
    या फिर था तुम्हारा
    कि तुम हीरा न थे ।

    वाह बहुत सुंदर सेडोका ... सभी रचनाएँ गहन भाव लिए हुये ...

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  2. सुंदर - भावपूर्ण सेदोका के लिए बधाई .

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  3. मैंने तुमको
    जब -जब परखा -
    तुम निकले काँच,
    दोष ये मेरा
    या फिर था तुम्हारा
    कि तुम हीरा न थे ।

    बहुत भावपूर्ण सेदोका, मंजू जी को बधाई.

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  4. मैंने तुमको
    जब -जब परखा -
    तुम निकले काँच,
    दोष ये मेरा
    या फिर था तुम्हारा
    कि तुम हीरा न थे ।
    मंजू जी उमदा सेदोका के लिए बधाई।

    3

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  5. बेहतरीन सेदोका...। बधाई...।
    प्रियंका

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  6. ज्योत्स्ना शर्मा28 सितंबर 2012 को 8:57 pm बजे

    आओ कर दूँ
    सुबह और शाम
    सब तुम्हारे नाम,
    फिर बनाएँ
    सपनों की तस्वीर
    नाम रखें ज़िंदगी ।...समर्पण और जीवन का सुन्दर भाव ..बधाई

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