सोमवार, 24 सितंबर 2012

न रहा अच्छा (ताँका)


डॉ अमिता कौण्डल
1
उसी ने तोड़ा
जो दिल में बसा है
आँखों  में इक,
दुःख  का दरिया  है
और सीने में दर्द ।
2
हाथ छुड़ाया,
चुप से चले गए
सोचा न कभी 
दुःख के  सागर में
अब हम डूबे  हैं   ।
3
आज तू रूठा
चल दिया चुपके
न जाने कल
तुझको  दिखे यह 
मेरा चेहरा फिर?
4
खाए जो जख़्म
तब  जाना हमने
दर्द दिल का ,
पहले तो पढ़ते
और सुनते  ही थे ।
5
न रहा अच्छा
तो न रहेगा बुरा
वक्त भी, यूँही
समय के साथ तू
बहता रह प्राणी
6
जी हर दिन
न केवल काट ये
समय- धागा
बीता समय साथी
लौट कर न आता ।
-0-

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर सन्देश...

    न रहा अच्छा
    तो न रहेगा बुरा
    वक्त भी, यूँही
    समय के साथ तू
    बहता रह प्राणी

    सभी ताँका बहुत उम्दा, बधाई अमिता जी.

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  2. सुन्दर भावाभिव्तक्ति। अमिता जी बधाई।

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  3. खाए जो जख़्म
    तब जाना हमने
    दर्द दिल का ,
    पहले तो पढ़ते
    और सुनते ही थे ।
    बहुत सच बात कही है...। बधाई...।
    प्रियंका

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  4. ज्योत्स्ना शर्मा28 सितंबर 2012 को 8:53 pm बजे

    मन को छू लेने वाले ताँका ...
    जी हर दिन
    न केवल काट ये
    समय- धागा
    बीता समय साथी
    लौट कर न आता ।...बहुत गहरी बात ....बहुत बधाई !!

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