शनिवार, 6 अक्टूबर 2012

अलसाई चाँदनी -सेदोका संग्रह से-2


1
कोई भी छत
प्यार या विश्वास की
सर पर नहीं है ,
बहुत ऊँचा
क़िला आलीशान है,
पर घर नहीं है ।
- डॉ• मिथिलेश दीक्षित
2
भोर का पंछी
आज फिर चुगेगा
रात के बचे दाने,
शाम को लौट
बुनेगा काली रात
फिर उन्हीं दानों से ।
- डॉ•अनीता कपूर
3
मन की पीड़ा 
बूँद -बूँद बरसी
बदरी से जा मिली
तुम न आए 
साथ मेरे रो पड़ी 
काली घनी घटाएँ ।
 - डॉ• जेन्नी शबनम

4
उपमेय थी
उपमानों से घिरी
बन गई अन्योक्ति
समझा अब-
तुम रहोगे श्लेष
ढके रूप अनेक ।
-कमला निखुर्पा
5
सुनो ज़िन्दगी !
तुम एक कविता
मैं बस गाती चली,
रस -घट भी
प्रेम या पीडा़ -भरा
पाया , लुटाती चली ।
- डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा
(अलसाई चाँदनी -सेदोका संग्रह से )

6 टिप्‍पणियां: