गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012

आशा का वृक्ष (्चोका)


1- द्वार पे सजे -रचना श्रीवास्तव
आशा का वृक्ष
मन में खिले सदा
अँधेरा भागे
उजाले की झालर
द्वार पे सजे
सोचों  में राम रहे
घर में ख़ुशी
अपनों का साथ हो
दूर काली रात हो 
-0-
2- आखिरी पत्ता- रचना श्रीवास्तव
आखिरी पत्ता
झड़ने से पहले
काँप  रहा था
सोचा नहीं था  कभी
जब फूटा था
कोंपल बन कर
इस पेड़ पे ,
कि  बिछुड़ना होगा
इस डाली से ,
जिसपे  जन्म लिया l
धूप को पिया
बरखा में नहाया
भोजन बना
पेड़ की गलियों में
पहुँचाया भी
आया  शरण जो भी
छाया दी उन्हें ,
हवा की गर्द झाड़ी
सजाया उसे l
पीली हुई काया तो
अपने भूले ,
साथी भी छोड़ गए
ठूँठ हुआ वो ,
तो पक्षी  उड़ गए l
पर वो पत्ता
अपना   दर्द लिये
आँखों को मूँदे
डाली से जुदा हुआ
एक  उम्मीद
मन में लिये हुए
कि  लौटेंगे वो
बहारें तो आएँगी
वापस  न जाने को  
-0-

8 टिप्‍पणियां:

  1. उजाले की झालर
    द्वार पे सजे
    सोचों में राम रहे
    घर में ख़ुशी
    अपनों का साथ हो
    दूर काली रात हो

    bahut sundar Rachna !

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  2. उजाले की झालर
    द्वार पे सजे
    सोचों में राम रहे
    घर में ख़ुशी

    वाह...मन को प्रसन्न करती पंक्तियाँ!!

    आखिरी पत्ता
    झड़ने से पहले
    काँप रहा था
    सोचा नहीं था कभी
    जब फूटा था
    कोंपल बन कर
    इस पेड़ पे ,
    कि बिछुड़ना होगा

    बिछुड़ने का दर्द...स्त्री में जन्म लिया तो घर से बिछुड़ना...फिर संसार से...बहुत बढ़िया चोका|

    बहुत बहुत बधाई!!

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  3. सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति ....

    आशा का वृक्ष
    मन में खिले सदा
    अँधेरा भागे
    उजाले की झालर
    द्वार पे सजे
    सोचों में राम रहे
    घर में ख़ुशी
    अपनों का साथ हो
    दूर काली रात हो ...आशा से परिपूर्ण बहुत अच्छा चोका ...बधाई
    सादर ..ज्योत्स्ना

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  4. रचना जी , बहुत सुंदर चोका
    "आखिरी पत्ता
    झड़ने से पहले
    काँप रहा था....... "

    यह तो बहुत ही सुंदर है ...बधाई !
    डॉ सरस्वती माथुर

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  5. Aakhiri patte ke madhyam se jivan ko bahut khub samjhaaya hai aapne bahut2 badhai....

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  6. खुशियों के दीप जलाती पंक्तियाँ और फिर मन में मार्मिकता का संचार करती दूसरे चोके की लाइनें...एक साथ दोनो भावों की अनुभूति करा दी आपने...। दोनो चोका बहुत अच्छे लगे...। मेरी बधाई...।
    प्रियंका

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  7. आँखों को मूँदे
    डाली से जुदा हुआ
    एकउम्मीद
    मन में लिये हुए
    कि लौटेंगे वो
    बहारें तो आएँगी
    वापसन जाने को ।



    निराशा में आशा का समन्वय बहुत सुंदर है . बधाई रचना जी.

    सादर,

    अमिता कौंडल

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  8. उजाले की झालर
    द्वार पे सजे
    सोचों में राम रहे
    घर में ख़ुशी
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ। दोनो ही चोका बहुत भावपूर्ण हैं।
    रचना जी को बधाई।

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