गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

जीवन था सोना ,

माहिया-रामेश्वर काम्बोज  'हिमांशु
1
ये जीवन था सोना ,
किसकी नज़र लगी
अब माटी  हर कोना ।
2
 परिभाषा अपनों की
समझ न पाए थे
 पीड़ा हम सपनों  की ।
3
तू  सपने में आया
बिन बात रुलाना
हमको न ज़रा भाया ।
4
पनघट भी प्यासा है
गर ओ बूँद मिले
बचने की आशा है  ।
5
जो मीत हमारे थे
धोखा देने में
दुश्मन भी हारे थे ।
6
बिन मौत न हम  मरते
तुमने दे डाले
वे घाव नहीं भरते ।
7
जीवन था चन्दन-वन
ऐसी आग लगी
झुलसा है तन औ मन ।
-0-




6 टिप्‍पणियां:

  1. परिभाषा अपनों की
    समझ न पाए थे
    पीड़ा हम सपनों की ।

    बिन मौत न हम मरते
    तुमने दे डाले
    वे घाव नहीं भरते ।

    बहुत बढ़िया।
    यूँ तो एक-एक माहिया बहुत भावपूर्ण है।
    आभार

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  2. जीवन था चन्दन-वन
    ऐसी आग लगी
    झुलसा है तन औ मन ।
    jeevan aur chandan fir aag kya sunder upmayen hai bahut kuchh kahti hui
    rachana

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  3. जो मीत हमारे थे
    धोखा देने में
    दुश्मन भी हारे थे ।
    सभी माहिया बहुत अच्छे हैं, पर यह वाला तो गज़ब है...बधाई...|

    प्रियंका

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    उत्तर
    1. बहुत सुंदर माहिया पढ़े, दिल सुवासित हो गया ..यह तो मन में गहरे उतर गया .....
      "बिन मौत न हम मरते
      तुमने दे डाले
      वे घाव नहीं भरते ।"
      .इन्हें स्वरबद्ध करवाइए मज़ा आ जायेगा .. हिमांशु जी .वाह !

      एक से बढ़ कर एक माहिया ...आभार !

      डॉ सरस्वती माथुर


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  4. जीवन आवर रिश्तों के विभिन्न पहलुओं को छूते हुए ये माहिया बहुत अच्छे लगे हिमांशु जी | धन्यवाद |

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  5. ज्योत्स्ना शर्मा7 दिसंबर 2012 को 10:05 pm बजे

    विविध भावों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर माहिया ....
    जीवन था चन्दन-वन
    ऐसी आग लगी
    झुलसा है तन औ मन ।.....बेहद प्रभावी ....चन्दन-वन होना सरल तो नहीं ...बहुत बधाई

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