रचना श्रीवास्तव
माँ देखा मैने -
बहुत कुछ देखा
बेनूर लोग
बेरंग ये दुनिया
देखा है मैने
खुद आगे जाने को
कुचला उसे
स्वार्थी हुआ इन्सान
देखा है मैने
धर्म की आँधी में
जलता घर
चूड़ी तोड़ते तुम्हें
देखा है मैने
आते ही बुरा वक़्त
मुँह फेरते
अपनों को भी यहाँ
देखा है मैने
तेजाब से जलता ,
वो चेहरा भी
क्या थी खता उसकी ?
देखा है मैने
कर्ज में डूबा शव
रोता वो घर
बंजर हुआ खेत
देखा ये सब
अब न देखा जाए
सुन विनती
तू इतनी -सी मेरी
गर्भ में सदा
रहने दे मुझको
बाहर नहीं
आना चाहता हूँ मै
हिस्सा बनना
इस बुरे जग का
नहीं चाहता
नहीं चाहता हूँ मैं
इन जैसा बनना ।
माँ देखा मैने -
बहुत कुछ देखा
बेनूर लोग
बेरंग ये दुनिया
देखा है मैने
खुद आगे जाने को
कुचला उसे
स्वार्थी हुआ इन्सान
देखा है मैने
धर्म की आँधी में
जलता घर
चूड़ी तोड़ते तुम्हें
देखा है मैने
आते ही बुरा वक़्त
मुँह फेरते
अपनों को भी यहाँ
देखा है मैने
तेजाब से जलता ,
वो चेहरा भी
क्या थी खता उसकी ?
देखा है मैने
कर्ज में डूबा शव
रोता वो घर
बंजर हुआ खेत
देखा ये सब
अब न देखा जाए
सुन विनती
तू इतनी -सी मेरी
गर्भ में सदा
रहने दे मुझको
बाहर नहीं
आना चाहता हूँ मै
हिस्सा बनना
इस बुरे जग का
नहीं चाहता
नहीं चाहता हूँ मैं
इन जैसा बनना ।
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बहुत मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंnamaste rachna ji , bahut sundar marmik chokha , badhai aapko
जवाब देंहटाएंबहुत भावात्मक रचना।
जवाब देंहटाएंआपको बधाई।
बहुत ही भावपूर्ण और मार्मिक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंयथास्थिति को कहती बहुत मार्मिक रचना |
जवाब देंहटाएंअंत:करण को झिंझोड़ती एक सशक्त् तथा भावपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंबधाई रचना आपको |
बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण रचना है...बधाई...|
जवाब देंहटाएंप्रियंका