शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

शीत-कन्या बेघर


डॉ सुधा गुप्ता

1-बर्फ़ ढो लाई
 दाँत किटकिटाती
 पौष की हवा
 सब द्वार थे बन्द
 दस्तक दी ,न खुला
2
रात बिताती
अलाव के सहारे
मज़ूरों - बीच
शीत-कन्या बेघर
सिर नहीं छप्पर ।
3
झोंक के मिर्च
शहर की आँखों में
लुटेरा शीत
सब कुछ उठाके
सरेशाम गायब ।
4
तीर -सी चुभी
खिड़की की सन्धि से
शातिर हवा
कमरे का सुकून
चुरा ले गई ।
5
धुआँती रही
चूल्हे की लकड़ियाँ
टपके  आँसू
पकाती रही हवा
कँकर वाला भात  ।
-0-

6 टिप्‍पणियां:

  1. धुआँती रही
    चूल्हे की लकड़ियाँ
    टपके आँसू
    पकाती रही हवा
    कँकर वाला भात ।
    jitni prasnsha ki jaaye kam hai ....bahut2 badhai...

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  2. धुआँती रही
    चूल्हे की लकड़ियाँ
    टपके आँसू
    पकाती रही हवा
    कँकर वाला भात ।.....bahur sundar panktiya wah

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  3. धुआँती रही
    चूल्हे की लकड़ियाँ
    टपके आँसू
    पकाती रही हवा
    कँकर वाला भात।
    सर्वोत्तम तंका बहुत-२ बधाई।

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  4. ज्योत्स्ना शर्मा29 दिसंबर 2012 को 9:56 pm बजे

    सुन्दर बिम्ब प्रस्तुत करते बहुत सुन्दर ताँका ..
    बहुत बधाई दीदी
    सादर ..ज्योत्स्ना शर्मा

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  5. सुधा दी की लेखनी से तो मोती ही निकलते हैं ! मानवीकरण के माध्यम से क्या बिंब चित्रित किए हैं ! अति सुंदर!

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  6. क्या बात है...वाह...आनंद आ गया...|
    आभार और बधाई...|
    प्रियंका

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