बुधवार, 26 दिसंबर 2012

तुम्हारा ये उजास


 कृष्णा वर्मा
1
सहती धरा
महावट दुश्वारी
तो खिले फुलवारी
जाने है मही
सहा ना यदि कष्ट
चती त्राहि-त्राहि
2
पतझड़ से
तरु और लताएँ
वस्त्रहीन हो जाएँ
शीत ऋतु आ
चाँदी -से चमकते
हिम वस्त्र ओढ़ाए।
3
ओढ़े हिम की
विश्व जब चादर
लगे स्वर्ग की हूर
तन चमके
चाँदी - सा चम-चम
भानु छिड़के नूर।
4
छिप गए क्यूँ
भयभीत शीत से
नभद्वीप की ओट
दिनकर !
तुम्हारा ये उजास
है जगती का प्राण।
5
कैसे अजब
कुदरत के रंग
हिम भी दे उजास
हिम गिरती
रजनी यूँ दमके
स्वर्ग का हो आभास।
-0-

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति के अनेक रंग बिखेरते सुंदर सेदोका। इस ने बहुत प्रभावित किया -

    "पतझड़ से
    तरु और लताएँ
    वस्त्रहीन हो जाएँ
    शीत ऋतु आ
    चाँदी -से चमकते
    हिम वस्त्र ओढ़ाए।"

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  2. ज्योत्स्ना शर्मा29 दिसंबर 2012 को 9:59 pm बजे

    बहुत सुन्दर सेदोका ...
    कैसे अजब
    कुदरत के रंग
    हिम भी दे उजास
    हिम गिरती
    रजनी यूँ दमके
    स्वर्ग का हो आभास।...विशेष ! बधाई !

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