गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

देखा है मैने


रचना श्रीवास्तव 
माँ  देखा मैने -
बहुत कुछ देखा
 
बेनूर लोग
बेरंग ये दुनिया
देखा है मैने
खुद आगे जाने को
कुचला उसे
 
स्वार्थी हुआ इन्सान
 
देखा है मैने
 
धर्म की आँधी में
 
जलता घर

चूड़ी तोड़ते तुम्हें

देखा है मैने
आते ही बुरा वक़्त
मुँह फेरते
अपनों को भी यहाँ
देखा है मैने
तेजाब से जलता  ,
वो चेहरा भी
क्या थी खता उसकी ?
देखा है मैने
कर्ज में डूबा शव
रोता वो घर
बंजर हुआ खेत
देखा ये सब
अब  न  देखा जाए
सुन विनती
तू इतनी -सी मेरी
 गर्भ में सदा
रहने दे मुझको
बाहर   नहीं
आना चाहता हूँ मै
हिस्सा बनना
इस बुरे  जग का
नहीं चाहता
नहीं चाहता हूँ मैं
इन जैसा बनना 
-0-

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावात्मक रचना।
    आपको बधाई।

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  2. बहुत ही भावपूर्ण और मार्मिक प्रस्तुति !

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  3. ज्योत्स्ना शर्मा7 दिसंबर 2012 को 10:59 pm बजे

    यथास्थिति को कहती बहुत मार्मिक रचना |

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  4. अंत:करण को झिंझोड़ती एक सशक्त् तथा भावपूर्ण रचना |

    बधाई रचना आपको |

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  5. बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण रचना है...बधाई...|
    प्रियंका

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