बुधवार, 23 जनवरी 2013

रंगों की छटा छाई


सुदर्शन रत्नाकर

आहट हुई
आता ही होगा कोई
शायद वही
कलियाँ मुस्कराईं
घूँघट  खोले
रंगों की छटा छाई
धरा नहाई
आसमान निखरा
सरसों खिली
सुगंधित हवाएँ
करतीं मस्त
छूट गया आलस्य
विदा हो गईं
ठिठुरन की रातें
लाईं सौग़ातें
भँवरों की गुंजार
कुहू की कू कू
मन को है सुहाई
वसंत तु  आई
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7 टिप्‍पणियां:

  1. धरा नहाई

    आसमान निखरा

    सरसों खिली

    सुगंधित हवाएँ

    करतीं मस्त
    sunder chitan
    rachana

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  2. वसंत ऋतु के रूप वैभव को चित्रित करती सुन्दर रचना| सुदर्शन जी को बधाई|

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  3. क्या बात है ...
    बहुत सुंदर सुदर्शन रत्नाकर .....!!

    स्वागत है बसंत ....

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  4. बहुत खूबसूरत! प्राकृतिक छटा बिखेरता चोका !
    ~सादर!!!

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  5. नैसर्गिक छटा का वर्णन करती सुन्दर रचना। सुदर्शन जी बधाई।

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  6. ज्योत्स्ना शर्मा24 जनवरी 2013 को 11:43 pm बजे

    सुन्दर वसंत ऋतु वर्णन प्रस्तुत करती मोहक रचना ...बहुत बधाई !

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  7. बहुत ही सुन्दर...बसन्त कि छटा निखर गई...सादर बधाई !!

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