मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

छूटी सारी गलियाँ


शशि पुरवार
1
छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
वो बाग़ों की कलियाँ ।
2
सारे  थे दर्द  सहे
तन- मन टूट गए
आँखों से पीर बहे ।
3
थी तपन भरी आँखें
मन भी मौन रहा
थी टूट रही साँसें ।
-0-

10 टिप्‍पणियां:

  1. छूटी सारी गलियाँ
    बाबुल का अँगना
    वो बाग़ों की कलियाँ ।

    बहुत सुन्दर

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  2. बहुत सुन्दर माहिया...बधाई।

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  3. छूटी सारी गलियाँ
    बाबुल का अँगना
    वो बाग़ों की कलियाँ ।

    Bhavpurn abhivyakti...

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  4. वाह...
    बहुत सुन्दर..
    बधाई शशि
    अनु

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  5. सभी माहिया बहुत भावपूर्ण...

    सारे थे दर्द सहे
    तन- मन टूट गए
    आँखों से पीर बहे ।

    बधाई.

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  6. bahut mohak mahiya ..

    bahut badhaaii Shashi ji ...shubh kaamanaaon ke saath ..

    jyotsna sharma

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