शशि पुरवार
1
छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
वो बाग़ों की कलियाँ ।
2
सारे थे दर्द सहे
तन- मन टूट गए
आँखों से पीर बहे ।
3
थी तपन भरी आँखें
मन भी मौन रहा
थी टूट रही साँसें ।
-0-
2
सारे थे दर्द सहे
तन- मन टूट गए
आँखों से पीर बहे ।
3
थी तपन भरी आँखें
मन भी मौन रहा
थी टूट रही साँसें ।
-0-
छूटी सारी गलियाँ
जवाब देंहटाएंबाबुल का अँगना
वो बाग़ों की कलियाँ ।
बहुत सुन्दर
shukriya himanshu ji , sandhu ji , shamil karne ke liye ,
जवाब देंहटाएंसुंदर माहिया
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत सुन्दर माहिया...बधाई।
जवाब देंहटाएंछूटी सारी गलियाँ
जवाब देंहटाएंबाबुल का अँगना
वो बाग़ों की कलियाँ ।
Bhavpurn abhivyakti...
बहुत भावप्रबल ...
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
बधाई शशि
अनु
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसभी माहिया बहुत भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंसारे थे दर्द सहे
तन- मन टूट गए
आँखों से पीर बहे ।
बधाई.
bahut mohak mahiya ..
जवाब देंहटाएंbahut badhaaii Shashi ji ...shubh kaamanaaon ke saath ..
jyotsna sharma