बुधवार, 22 मई 2013

परबत की पीर बहे ।


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
1
सोने -सी निखर गई 
नाम लिया तेरा 
सिमटी ,फिर बिखर गई
2
है दिल की लाचारी 
मत खोलो साथी 
यादों की अलमारी
3
वो लाख दुहाई दें 
बस में ना उनको 
अब याद रिहाई दें
4
अँखियाँ कितनीं तरसीं 
यादों की बदली 
फिर उमड़ -उमड़ बरसी
5
बादल तो काले थे 
यादों के तेरी 
बस साथ उजाले थे
6
हौले से हाय छुआ 
तेरी याद किरण 
मन मेरा कमल हुआ
7
जग दरिया लाख कहे 
जान गई मैं तो 
परबत की पीर बहे
8
पीले -से पात झरे 
अनचाहे ,दिल के 
होते हैं जख्म हरे
-0-

6 टिप्‍पणियां:

  1. umda rachnaye jyotsna ji :) pahli baar mahiya padh rahi hu ... sabhi utyam vishesh rup se 7
    जग दरिया लाख कहे
    जान गई मैं तो
    परबत की पीर बहे ।
    badhayi

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  2. बहुत सुंदर माहिया! दिल को छू गये..
    ~सादर!!!

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  3. सभी सुन्दर माहिया!
    यह अति सुन्दर...बधाई!

    जग दरिया लाख कहे
    जान गई मैं तो
    परबत की पीर बहे ।

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  4. है दिल की लाचारी
    मत खोलो साथी
    यादों की अलमारी ।

    पीले -से पात झरे
    अनचाहे ,दिल के
    होते हैं जख्म हरे ।
    बहुत सुन्दर, भावपूर्ण माहिया...बधाई...|
    प्रियंका

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  5. सभी माहिया बहुत उम्दा. जैसे दिल से निकल दिल में उतर गए...

    जग दरिया लाख कहे
    जान गई मैं तो
    परबत की पीर बहे ।

    बधाई.

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  6. सुन्दर प्रोत्साहन भरी उपस्थिति के लिए दिल से आभारी हूँ ...डॉ.जेन्नी शबनम जी ,प्रियंका जी ,कृष्णा जी ,अनिता जी evam Sunita Agarwal ji ..sneh banaaye rakhiyegaa ..

    saadar
    jyotsna sharma

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