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जेठ की धूप
-भावना कुँअर
जेठ की धूप
बनकर दुश्मन
जलाती तन
बिगाड़े सब रिश्ते।
बाज़ न आती
आग तक लगाती
न घबराती
हैं सब ही पिसते।
पूरे जंगल
धू-धू कर जलते
मूक रहते
हर दर्द सहते।
नन्हें -से
पौधे
माँगते जब पानी
बनाकर वो
भाप जैसे उड़ाती।
गर्व करती
खूब ही अकड़ती
न ही थकती
पल भर में फिर
गर्म साँसें भरती।
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bahut sundar waah badhai bhavna ji
जवाब देंहटाएंसामयिक सुन्दर चोका के लिए बधाई...|
जवाब देंहटाएंप्रियंका
बहुत सुन्दर चोका भावना जी बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर चोका
जवाब देंहटाएंबधाई
जेठ की धूप की बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...बधाई भावना जी
जवाब देंहटाएंज्योत्स्ना शर्मा