शशि पुरवार
1
पीर मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए ।
2
तुम हो मेरे
भाव-सखा सजन
तुम्हारे बिन
व्यथित मेरा मन
बतलाऊँ मैं कैसे ? .
3
चंचल हवा
मदमाती -सी फिरे
सुन री सखी !
महका है बसंत
पिय का आगमन !
4
शीतल हवा
ये अलकों से खेले
मनवा डोले
बजने लगे चंग
सृजित हुए छंद ।
-0-1
पीर मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए ।
2
तुम हो मेरे
भाव-सखा सजन
तुम्हारे बिन
व्यथित मेरा मन
बतलाऊँ मैं कैसे ? .
3
चंचल हवा
मदमाती -सी फिरे
सुन री सखी !
महका है बसंत
पिय का आगमन !
4
शीतल हवा
ये अलकों से खेले
मनवा डोले
बजने लगे चंग
सृजित हुए छंद ।
बहुत सुन्दर सृजन शशि जी ...बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंशुभ कामनाओं के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा
बहुत खूब लिखा है बधाई .
जवाब देंहटाएंbahut sundar tanka hain Shashi ji ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar tanka hain Shashi ji ...
जवाब देंहटाएंwww.manukavya.wordpress.com
shashi ji pratyek tanka sundar :) badhaayi :)
जवाब देंहटाएंshukriya himanshu ji , sandhu ji hamen shamil karne ke liye
जवाब देंहटाएंshukriya mitro utsaahvardhan hetu
शशि जी सभी ताँका बहुत सुन्दर...बधाई।
जवाब देंहटाएंचंचलता और श्रंगार का भाव लिए सुंदर ताँका। बधाई शशि जी !
जवाब देंहटाएंचंचल, श्रंगार का सौन्दर्य लिए सुंदर ताँका। बधाई शशि जी !
जवाब देंहटाएंसभी तांका बहुत सुन्दर...पर ये वाला खास तौर से मन को छू गया...|
जवाब देंहटाएंबधाई...|
प्रियंका
पीर मन की
जवाब देंहटाएंतपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए ।
ये तांका बहुत भाया...|
बधाई...|
प्रियंका