सोमवार, 22 जुलाई 2013

जग-जीवन

पुष्पा मेहरा
1
जग-जीवन
बिन पतवार-मैं
पाना चाहूँ साहिल
मँझधार में
बह रही है नाव
प्रभु तेरा सहारा।
2
वासना-जल
लिये मन में फिरूँ
डूबी सदा तन्द्रा में
सोचा इतना-
निर्मल-सरिता सी
बहूँ जग-धारा में।
3
लिए मैं पानी
उड़ती मैं हवा-सी
दुर्गम-पथ-हारी
देख आपदा
काँप गई  भय से
हो गई पानी-पानी।
 4
जीवन-जल
डाला था भाव-भँवर   
उठने लगा ज्वार ,
थामे न थमा
निकला था वेग ले
प्रवाह बन बहा
-0-

      

10 टिप्‍पणियां:

  1. प्रवाहमय मार्मिक सेदोका .

    बधाई

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
    बधाई पुष्पा जी!

    ~सादर!!!

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  3. सुन्दर भावपूर्ण सेदोका...बधाई!

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  4. बहुत सुन्दर सेदोका...बधाई...|

    प्रियंका

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  5. बहुत सुन्दर...प्रवाहमय भावपूर्ण सेदोका.
    पुष्पा जी, बधाई!

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  6. सुन्दर भावाभिव्यक्ति लिए उत्कृष्ट सेदोका ...बहुत बधाई!

    सादर

    ज्योत्स्ना शर्मा

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  7. बहुत सुन्दर सेदोका ... भाव मय अभिव्यक्ति ...

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
    बधाई पुष्पा जी!
    सादर

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