रविवार, 28 जुलाई 2013

घुटन की चादर

सेदोका
डॉभावना कुँअर
1
बीमार बनी
आँसुओं संग भीग
मेरी भोली मुस्कान,
नन्हीं तितली
ज्यूँ गीले पंख लिये
भर न पाए उड़ान।
2
चाहूँ मैं जाना
एक अजनबी से
अन्जान सफ़र पे,
रोकते हो क्यूँ
हर बार ही मुझे
बढ़ा हाथ अपना।
3
सँभाले रही
घुटन की चादर
जाने कहाँ उघरी,
निकल भागी
आँसुओं में लिपटी
जा दोस्त गले लगी।
-0-

6 टिप्‍पणियां:

  1. chahun jana ,ajanabise anjan safar pe ...., bhawana ji- bahut hi sunder bhaw hai. apke sabhi
    sedoka bhaw purna hain. badhai
    pushpa mehra.

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  2. "...नन्हीं तितली/ ज्यूँ गीले पंख लिये / भर न पाए उड़ान।"... बहुत खूब......... सभी सेदोका मानव मन की बारीकियों को व्यक्त करते हैं.........डॉ भावना जी, हार्दिक बधाई !

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  3. बहुत खूब सूरत मर्म को छू लेने वाली अभिव्यक्ति। मंजुल भटनागर

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  4. बीमार बनी
    आँसुओं संग भीग
    मेरी भोली मुस्कान,
    नन्हीं तितली
    ज्यूँ गीले पंख लिये
    भर न पाए उड़ान।....bahut sundar prastuti ...bahut badhaaii Dr. Bhavanaa ji

    jyotsna sharma

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  5. बहुत प्यारे सेदोका...हार्दिक बधाई...|

    प्रियंका

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