शशि पाधा
1
वीणा के तार बजे
काँपे अधरों पे
सुर -सरिता आन सजे
2
पावस की वेला है
पाहुन आन खड़े
रिमझिम का मेला है ।
3
दिन बीते अँधियारे
ऊषा द्वार खड़ी
बाँटे सुख-उजियारे ।
4
किरणें बिखराने दो
बंद झरोंखों से
सूरज को आने दो ।
5
भीनी -सी गंध उड़ी
कलियों को छूने
भँवरों की पाँत जुड़ी ।
6
लो चाँद बुला लाएँ
लहरों का पलना
कुछ देर झुला लाएँ ।
7
कितनी मजबूरी थी
सागर -सरिता में
मीलों की दूरी थी ।
8
चूड़ी तो मौन रही
पायल छनक गई
जब तूने बाँह गही ।
9
काहे भरमाते हो
खुशबू कह देती
क्यों छिप के आते हो ।
10
सरगम भी वजने दो
हमको सपने -सा
पलकों में सजने दो ।
-0-
शशि पाधा जी ,अति सुन्दर ,भाव पूरण
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मंजुल जी |
हटाएं" कितनी मजबूरी थी / सागर -सरिता में/मीलों की दूरी थी।" बहुत सुन्दर माहिया हैं!
जवाब देंहटाएंशशि पाधा जी, आपको हार्दिक बधाई !
behad sunder
जवाब देंहटाएंsaduwaad
saadar
शशि जी बेहद सुन्दर माहिया.....बधाई!
जवाब देंहटाएंshashi ji aapke sabhi mahiya man ko moh gaye behad umda .hardik badhai aapko
जवाब देंहटाएंसर्व आदरणीय सुभाष जी, सुनील जी, कृष्णा जी, शशि जी, आप सब का हार्दिक आभार |
जवाब देंहटाएंशशि