सोमवार, 2 सितंबर 2013

कब तक ना आओगे



शशि पाधा
  1
कागा क्या बोल रहा
कुछ ना समझ पड़ी
मन मोरा डोल रहा ।
  2        
काहे तरसाती है
पी का नाम नहीं
कोयल क्यों गाती है ।
3
किस किस से बात करूँ
रामा प्रीत बुरी
कानों पे हाथ धरूँ ।
4
कब तक ना आओगे
पीहर दूर नहीं
कह दूँ पछताओगे ।
5
सावन की धार लड़ी
गुमसुम -सी विरहन
नयनों में बाँध खड़ी ।
6
आँगन के छोर धरूँ
चिट्ठी साजन की
आँचल की ओट पढूँ ।
7
शुभ शगुन मनाने दो
सखियों मत रोको
पनघट पे जाने दो 
8
हाथों में कँगना है
डोली आन खड़ी
माही का अँगना है ।
9
यह चूड़ी पूछ रही
कँगना क्यों खनका
बिंदिया सब बूझ रही ।
10
पूनो की रात हुई
पूछा तारों ने
क्या उनसे बात हुई ।
11
लहरों को गाने दो
आई मिलन- घड़ी  
सुर -साज सजाने दो ।
-0-
        

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ,मधुर माहिया ...हार्दिक बधाई दीदी !

    कब तक ना आओगे
    पीहर दूर नहीं
    कह दूँ पछताओगे ।.......कल ...आज ...और कल ..बेहद प्रभावी ..:)

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  2. " कागा क्या बोल रहा / कुछ ना समझ पड़ी / मन मोरा डोल रहा ।"
    बहुत सुन्दर , सब मधुर प्रभावी माहिया ...हार्दिक बधाई !

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  3. namaste shashi ji
    behad sundar mahiya lage , hardik badhai , sabhi mahiya ek se badhkar ek hai 4,5,7 10 bahut khas lage

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  4. सभी माहिया बहुत सुंदर,बधाई

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  5. कब तक ना आओगे
    पीहर दूर नहीं
    कह दूँ पछताओगे ।
    Bahut hi sunder shabd bhedi baan chala hai..soch ki sashaktata rachna ki anubhooti mehsoos karane mein saksham hai

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