रविवार, 23 मार्च 2014

छाया सन्नाटा


1-ज्योत्स्ना प्रदीप
1
तू था ही नही
बीती बैसाखी पर
आ जाना ,राखी पर
तय हो गया
तेरी वीरा का ब्याह
तकती तेरी राह ।
2
बसे बिदेस
लौट भी आओ  घर
माँ- बाप के अधरों
छाया सन्नाटा
तुमने ही तो बाँटा
अब मुस्कान धरो ।
-0-
यादें    पुष्पा मेहरा      
1
 बही जो हवा
 उड़ने लगा मन
 ले आया भाव- तृण,
 बटोरा  उन्हें
 आज सजा रही हूँ
 उन्हीं से सुधि-वन ।
2
 वक्त - दरिया
 आया, बहा ले गया
 जो कुछ हाथ लगा,
 गढ़ जो लुटा
 एकांत उकताया
 मीठी यादें ले आया ।
-0-

6 टिप्‍पणियां:

  1. "वीरा का ब्याह" और "सन्नाटा " मन को छू गया ..ज्योत्स्ना जी बहुत बहुत शुभ कामनाएँ !!
    मीठी यादें लिए सुधि-वन मनमोहक है .....नमन वंदन पुष्पा जी

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  2. तू था ही नही
    बीती बैसाखी पर
    आ जाना ,राखी पर
    तय हो गया
    तेरी वीरा का ब्याह
    तकती तेरी राह ।

    वक्त - दरिया
    आया, बहा ले गया
    जो कुछ हाथ लगा,
    गढ़ जो लुटा
    एकांत उकताया
    मीठी यादें ले आया ।
    मन को छू जाने वाले भाव...बहुत सुन्दर...बधाई...|

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  3. आप दोनों को सुंदर रचना के लिए बधाई .

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  4. मन को छू गए आप दोनों के सेदोका....बहुत-२ बधाई !

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  5. चारों सेदोका ही बहुत अच्छे हैं ! 'सन्नाटा' व 'सुधि-वन' का तो क्या सुन्दर भाव ! मन को छू गए !
    ज्योत्स्ना प्रदीप जी एवं पुष्प मेहरा जी आप दोनों को हार्दिक बधाई !

    ~सादर
    अनिता ललित

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  6. jyotsnaji,priyanka ji,manju ji,krishna ji utsah vardhan ke liye bahut bahut abhar......pushpaji....sudhi van ...bahut hi manmohak

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