रविवार, 30 नवंबर 2014

नारी की सोच



सुदर्शन रत्नाकर
1
नारी की सोच
सागर- सी गहरी
फिर भी वो बेचारी,
क्यों  होता ऐसा
तिल -तिल जलती
ख़ुशियाँ वो बाँटती ।
2
द्वार खुले हैं
ठंडी हवा के झोंके
छू रहे तन मन,
फिर भी कहीं
पिश है भीतर
अरक्षित होने की ।
-0-

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-12-2014) को "ना रही बुलबुल, ना उसका तराना" (चर्चा-1814) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. नारी की सोच
    सागर- सी गहरी
    फिर भी वो बेचारी,
    क्यों होता ऐसा
    तिल -तिल जलती
    ख़ुशियाँ वो बाँटती ।
    bahut hi sunder soch
    badhai
    rachana

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  3. dil kii gaharaaiyon se niklii aur dil ko gahare tak chhootii rachanaayen ...haardik badhaaii didi ...

    saadar
    jyotsna sharma

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