गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

ड्योढ़ी पर दीप जला



डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
ड्योढ़ी पर दीप जला
हँसता उजियारा
तम के मन ख़ूब खला ।
2
बैरन हैं ये सखियाँ
लब ख़ामोश रहें
चुग़ली खातीं अँखियाँ ।
3
मन -उत्सव मन जाते
जो तेरे मन का
अनमोल रतन पाते ।
4
है कुफ़्र सितारों का
बीत गया तन्हा
ये वक़्त बहारों का ।
5
थोड़े से हैं खारे
आए हैं दिल से
सुख-दुख के हरकारे ।
6
देखूँ खिलती कलियाँ
याद बहुत आएँ
बाबुल तेरी गलियाँ ।
7
फूलों की थी ढेरी
शूल चुभाती है
यादों की झरबेरी ।
8
साथी ना संगी हैं
ये सुख दुनिया के
अहसास पतंगी हैं ।
9
मुश्किल -सा रस्ता है
बिखरी यादों का
ये दिल गुलदस्ता है ।
10
कैसा यह खेल किया
झूठे सपनों से
अँखियों का मेल किया ।

-0-

11 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut khoob Likha Hai Aapne. Heart touching.

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  2. bjyotsna ji sabhi mahiya bagut sunder likhe hain.badhai.
    pushpa mehra.

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  3. ज्योत्स्ना जी भावपूर्ण माहिया लिखने पर बधाई |

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  4. बहुत मनभावन माहिया हैं ज्योत्सन जी |
    जी चाहता है इन्हें गुगुनाया जाए | बधाई |

    सस्नेह,
    शशि पाधा

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  5. आदरणीया शशि दी , सविता जी ,रीना जी ,राजेन्द्र जी , पुष्पा दी ,एवं मनोज श्रीवास्तव जी ..प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार !

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  6. jyotsna ji,aapne bahut bhaavpurn mahiya likha hai....namaskaar ke saath badhai baar -baar.

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  7. भावपूर्ण माहिया के लिए हार्दिक बधाई...

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  8. बहुत बहुत आभार ज्योत्स्ना प्रदीप जी एवं प्रियंका गुप्ता जी

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  9. ड्योढ़ी पर दीप जला
    हँसता उजियारा
    तम के मन ख़ूब खला ।

    Ati uttam hardik badhai...

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