सोमवार, 22 दिसंबर 2014

रिश्ते काँच- से



डॉ भावना कुँअर
1
रिश्ते काँच- से
जरा ठसक लगी
चूर-चूर हो गए,
जोड़ना चाहा
रीते मन के प्याले
घायल हम हुए ।

2
चाकू की नोक
पेड़ों के सीने पर
दे जाती कुछ नाम ,
ठहरा वक्त
पेड़ भी हैं ,नाम भी;
पर, जीवन है कहाँ?
3
उतरे हम
दर्द के दरिया में
किनारा मिला नहीं,
आँसू तो सूखे
दिल का बोझ बढ़ा
आहों में दुआ रही।
4
भीगे हों पंख
धूप से माँग लूँ मैं
थोड़ी गर्मी उधार,
काटे हैं पंख
जीवन का सागर
कैसे करूँ मैं पार !
5
भर रहीं हैं
मन -भीतर बातें
तेरी वो सीलन-सी,
सीली दीवारें
टूटे - बिखरे किसी
ज्यों घर- आँगन की।
6
मन का कोना
ख़ुशबू नहाया -सा
सुध बिसराया- सा
न जाने कैसे
भाँप गया जमाना
पड़ा सब गँवाना।
7
छू गया कोई
गहराई से मन
खुले सब बंधन
सोई पड़ी थी
बरसों से कहीं जो
जागी आज चुभन।
8
गर्म है हवा
छीन ले गया कौन
ठंडे नीम की छाँव?
बसता था जो
साँसों में सबके ही
गुम हो गया गाँव।
-0-
-0-

( शीघ्र प्रकाश्य 'जाग उठी चुभनसेदोका संग्रह से )


12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन सृजन, सभी सेदोका बहुत सुन्दर ! डॉ भावना कुँवर जी आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

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  2. सुन्दर भाव और शब्दों का बेजोड़ सम्मिश्रण | सभी सेदोका एक से बढ़कर एक| बधाई भवना जी |

    शशि पाधा

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  3. बहुत भावपूर्ण ,सुन्दर सेदोका !मन का कोना ,भीगे हों पंख ..बेहतरीन !
    बहुत बधाई भावना जी

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  4. भीगे हों पंख
    धूप से माँग लूँ मैं
    थोड़ी गर्मी उधार,
    काटे हैं पंख
    जीवन का सागर
    कैसे करूँ मैं पार !

    क्‍या खूब लिखती है आप। एक सदोका कमाल है।
    आप के लेखन को नमन ।

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  5. Aap sabhi ka apar sneh paakar man gadgad ho gaya, ye sneh hi meri lekhni ki taakat hai bahut bahut aabhar

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  6. उम्दा भावपूर्ण सेदोका.....भावना जी बहुत बधाई!

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  7. भावना जी बहुत भाव पूर्ण सेदोका लिखे हैं आपने हार्दिक बधाई
    सविता अग्रवाल "सवि"

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  8. दर्द में नहाए सभी सेदोका मन को छू गए, भिगो गए... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति !

    ~सादर
    अनिता ललित

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  9. बहुत भावपूर्ण ,सुन्दर सेदोका

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  10. बहुत बढ़िया सेदोका...हार्दिक बधाई...|

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