डॉ०पूर्णिमा राय
1
ये फूलों की क्यारी
काँटों -बीच सजी
लगती सबको प्यारी।
2
कानों में रस घोले
मुरली की ये धुन
भेद दिलों के खोले।।
3
आँखों में सपने हैं
तेरा संग मिले
दुश्मन भी अपने हैं।
4
टिप-टिप पानी बरसे
रूठ गये हो तुम
प्रेमी मन ये तरसे।
5
लगता मोरा न
जिया
गिन -गिन तारे भी
कटती ना रात पिया।
6
राहों में हैं
काँटें
चुनकर काँटों को
फूलों को हम
बाँटें।
-0-
...
डॉ पूर्णिमा जी सभी माहिया का सुन्दर भावों के साथ सृजन किया है |हार्दिक बधाई |नवरात्रि की शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंbahut sundar maahiya, Purnima ji, shubhkaamnaayen!
जवाब देंहटाएंआभार सविता जी!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआभार अमित जी
जवाब देंहटाएंआभार सविता जी!!
जवाब देंहटाएंये फूलों की क्यारी
जवाब देंहटाएंकाँटों -बीच सजी
लगती सबको प्यारी।
yah vishesh , sbhi utkrisht haen
badhai
sabhi mahiya bahut pyare purnima ji aapko !haardik badhai !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर माहिया।
जवाब देंहटाएंहर माहिया अपने अलग भाव - सज्जा से सजा है , बहुत सुंदर है , पूर्णिमा जी आपको बधाई |
जवाब देंहटाएंपुष्पा मेहरा
बहुत सुन्दर माहिया पूर्णिमा जी....बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर माहिया डॉ पूर्णिमा राय जी !
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई !!!
~सादर
अनिता ललित
राहों में हैं काँटें
जवाब देंहटाएंचुनकर काँटों को
फूलों को हम बाँटें।
bahut khub ! bahut sari badhai aapko sundar lekhn ke liye...
राहों में हैं काँटें
जवाब देंहटाएंचुनकर काँटों को
फूलों को हम बाँटें।
बहुत सुन्दर माहिया हैं सभी...पर ये वाला अधिक पसंद आया | बधाई...|