बुधवार, 25 नवंबर 2015

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ज्योत्स्ना प्रदीप
1
जीवन अवसाद नहीं
उसकी छाया हो
फिर कुछ भी याद नहीं ।
2
पातों  की बेबाकी
गिरती  बूँदों को
लो ! मान लिया साकी ।
3
भँवरें बदनाम हुए
गुलशन में आ
कुछ किस्से आम हुए ।
4
मंजर  शैतान हुआ
रात  यशोदा- सी
चंदा छुप ,श्याम हुआ ।
5
मंज़र कितनें प्यारे
गगन धरा छूता
नभ को निशिकर -तारे
6
गैया की नादानी
बैठी चौराहे
भोली- सी मनमानी
7

खोने से  सहमे हो
उतरेगी इक दिन
काया जो पहने हो ।
8
सब कुछ न कभी खोता
भोर उसे प्यारी,
जो नींद गहन सोता ।
9
चंदा सौगात तभी,
कौन तके उसको
होती जो रात नहीं ।
10
जीवन क्षण -भंगुर है
झरते  फूलों से
सहमा कुछ अंकुर है ।
11
सच का अपराध यही
पथ है कठिन बड़ा
जीवन   की साध यही ।
12
ईश्वर को पाना है
उसके अंश सभी
उसमें मिल जाना है ।
13
जीवन की बात यही-
इसको  चैन नहीं
साँसें सौगात रहीं ।
14
बस समय बदलता है 
पूर्ण विराम नहीं,
यह जीवन चलता है ।
-0-

11 टिप्‍पणियां:

  1. ज्योत्स्ना जी बहुत अच्छे माहिया।विशेष-

    खोने से सहमे हो
    उतरेगी इक दिन
    काया जो पहने हो ।। बधाई।

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  2. ज्योत्स्नाजी बहुत ख़ूबसूरत माहिया। बधाई।

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  3. दार्शनिक भावों से परिपूर्ण सुंदर माहिया ज्योत्स्ना जी | बधाई आपको |

    शशि पाधा

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  4. सभी माहिया बहुत सुंदर हैं ,ज्योत्स्ना जी बधाई|

    पुष्पा मेहरा

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  5. aap sabhi kee hridy se abhaaree hoon mujhe samay -samay par snehil -protsahan dene ke liye ...

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  6. बहुत सुन्दर माहिया...हार्दिक बधाई...|

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  7. भाव गंभीर ,सुन्दर माहिया ...अनुपम सृजन हेतु बहुत बधाई ज्योत्स्ना जी !

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