शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

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 मुरझाया फूल (हाइबन)

कमला घटाऔरा 

बाल्कनी में मैंने फूलों के कुछ पौधे लगा रखे थे । सुबह धुँधलके में ही उठकर उन्हें देखने और पानी देने उनके पास आ जाती । जल्दी उठने का एक बहाना सा मिल गया था । उस दिन जैसे ही मैं  बाल्कनी  में आई मैंने देखा बाहर सड़क पर आने जाने वाले लोग एक पल रुक कर कुछ देख रहे हैं ।जिज्ञासा बस मैंने भी उस ओर देखा । वहाँ ध्यान खींचने वाली ऐसी क्या चीज है कि आते जाते लोग रुक-रुक कर कुछ देख रहे हैं । मैंने देखा -सड़क से हट कर एक मानव तन झाड़ियों से बनी दीवार में सिर डाले पड़ा है । कुछ देर मैं वहाँ उस तन के हिलने- डुलने का इन्तज़ार करती रही । वह तो जैसे प्रगाढ़ निंद्रा का आनंद ले रहा हो ; इसीलि शायद किसी ने उसे जगाना भी उचित नहीं समझा अथवा उसने ज्यादा पी रखी  हो ,सोचकर आगे बढ़ जाते । लेकिन मेरा मन सवालों की भूलभुलैयाँ में खो गया ! कहीं मृत तो नहीं ? नहीं मृत नहीं हो सकता । ऐसा होता तो किसी न किसी ने पुलिस को सूचित कर दिया होता  और अब तक इस रियाको  लाल और सफेद रंग के फीते से घेर दिया होता । पुलिस की गाड़ियों की गूँज  सारे मुहल्ले को जगा देती । ऐसा कुछ नहीं  हुआ था ।  सब अपने घरों मे गहरी नींद का आनंद ले रहें लगते हैं ,ऊपर से रविवार भी तो है। 
मेरे मन में फिर से ख्यालों ने शोर मचाना शुरू कर  दिया। हो सकता है किसी से इसका झगड़ा हुआ हो वह इसे धक्का देकर झाड़ियों में फेंक गया हो । लूटने वाले तो सरे आम लूट की बारदात  करके गायब हो जाते हैं। लेकिन यह हुआ तो कब  हुआ ? किसी के चीखने  चिल्लाने की तो कोई आवाज़ भी सुनाई नहीं पड़ी।  एक बार  रात के  दस ग्यारह का वक्त होगा कि कोई चिल्ला- चिल्लाकर अपने किसी का नाम लेकर पुकार रहा था और उसके पीछे दौड़ रही कई कदमों की आवाज़े उस के साथ मार पीट करने की बेताबी की जैसे सूचना दे रही थी  ।मगर किसी ने बाहर झाँककर भी नही देखा ,क्योंकि कुछ भी होता रहे  लोग  किसी की या अपनी प्राईवेसी में किसी की ताक झांक पसंद नहीं करते यहाँ । सब अपना जीवन अपने ढंग में जीने में मस्त रहना चाहते हैं। 
मैं अपनी बालकनी में खड़ी देखती रही । सामने स्कूल है । उसी से लगी  एक तिकोनी सी खाली जगह है । साथ लगती एक सड़क जो आगे जाकर रुक जाती है रात दिन खुला रहने वाले शोपिंग स्टोर तक। लगता है शोपिंग स्टोर से इस बंदे ने कुछ ड्रिंक वगैरह लेकर अधिक पी ली होगी और लुक गया । इस देश की आजादी और आर्थिक रूप से स्वावलंबन बच्चों को बिगाड़ता तो है लापरवाह भी बना देता है । अपनी ही उन्हें कोई चिन्ता नहीं रहती । औरों की क्या होगी । कोई इधर ध्यान भी नहीं देता । सब अपना जीवन अपने ढंग से जीते  हैं । दखल अन्दाजी यहाँ किसी को भी स्वीकार नहीं । कुदरत की कृपा समझो कि अब तक सूर्य देव अपनी किरणों का रथ लेकर प्रकट नहीं हु थे । आसमान में  हलकी लालिमा नज़र आने लगी थी । कैसा इन्सान है  उठ ही नहीं रहा । कोई क्यों नहीं इसे हिला डुला रहा ?खुद ही मैं अपने से प्रश्न करती खुद ही उत्तर दे देती । यहाँ कानून के झंझटों में कौन फँसे?
मैं भी पानी डाल कर अपनी दिनचर्या में लग गई । कुछ देर बाद बाहर आई तो देखा वहाँ कोई नहीं था । क्या यह मेरी आँखों का भ्रम था ? नहीं, भ्रम नहीं  हो सकता । वहाँ झाड़ियाँ तो अब भी मुचड़ी हुई दिखाई दे रहीं हैं ।सच में वहाँ कोई सोया हुआ था । कैसे लोग हैं यहाँ किसी को न अपनी परवाह है न बच्चों की ।  जब सारे संसार के बच्चों के लिये नशा ही जीवन का आनंद हो गया हो तो कोई क्या कर सकता है ?

बालकनी में 

मुरझा गया फूल 
 पानी बगैर  




17 टिप्‍पणियां:

  1. युवा पीढी के पतन को इंगित करता सुन्दर हाईबन...जाने किसका क़ुसूर पर कुम्हला जाते हैं फूल...बधाई कमला जी !

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  2. मन को उद्वेलित करता हुआ हाइबन...
    हार्दिक बधाई कमला जी!
    ~सादर
    अनिता ललित

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  3. मन को उद्वेलित करता हुआ हाइबन...
    हार्दिक बधाई कमला जी!
    ~सादर
    अनिता ललित

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  4. अति सुंदर व् सार्थक अभिव्यक्ति के लिए विशेष बधाई कमला जी
    देवी नागरानी

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  5. युवा पीढी के पतन को इंगित करता सुन्दर हाईबन, सुंदर व सार्थक अभिव्यक्ति....बधाई कमला जी !

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  6. सुसंस्कारों से वंचित या उनकी उपेक्षा करते स्वतंत्र मानसिकता में पलते समाज (युवा,प्रौढ़ ववृद्ध)की बिगड़ी स्थिति को प्रस्तुत करता सुंदर हाइबन,कमला जी बधाई |
    पुष्पा मेहरा

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  7. सच को इंगित करता मन को झकझोरता हाईबन।

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  8. कमला जी , मन में अनेक प्रश्न उठाता हाइबन है ,युवा पीढ़ी में संस्कारों की कमी के कारण ही जवान बच्चे गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं ,सुन्दर रचना है हार्दिक बधाई ।

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  9. मन में उथल-पुथल पैदा करता हाइबन...कमला जी बधाई!

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  10. वास्‍तव मेंं मन को झकझोरता हुआ अौौर बहुत से प्रश्‍न लिए हुए ये हाइबन ।

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  11. आप सब का उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिये हृदय से धन्यवाद । कमला

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  12. आज के सत्य को उजागर करता सुंदर हाइबन। बधाई

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  13. एक विकट समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करता , समाज को सचेत करता सुन्दर हाइबन !
    बहुत बधाई दीदी !

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  14. कई सारे ऐसे ही सवाल उथल पुथल मचाने लगे और मन विचलित हो गया...| बहुत सार्थक हाइबन लिखा आपने, मेरी बधाई...|

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