डॉ.ज्योत्स्ना
शर्मा
1
रस के लोभीभँवरे मँडराते
चतुर कली
देख-देख मुस्काए
पर हाथ न आए ।
2
सागर हुआ
मिलने को बेकल
धीमे-धीमे ही
बहती कल-कल
कहती रही.... कल !
3
चाहें तुम्हें,ये
बताया ही न गया
लाज घूँघट
चाहके भी उनसे
हटाया ही न गया !
4
बड़ी बेदर्द
सावन की झड़ी है
उषा- सुंदरी
मिलने सजन से
बेकल- सी खड़ी है !
5
मिलने आया
द्युतिमान सूरज
उषा मुस्काए
बैरिन है बदली
झट चुरा ले जाए ।
6
ढोल-नगाड़े
बजा रहा सावन
नाचे बरखा
कहीं उगे सपने
कहीं डूबा है मन !
7
भरा-भरा है !
रातभर सावन
क्यों रोता रहा !
भला दर्द किसका
मन भिगोता रहा !
ज्योत्स्ना जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढते ही श्रंगार उमड पड़ता है, इस मधुर कल्पना में सौन्दर्य बरसता है ||युग -युग जियो !
श्याम त्रिपाठी -हिन्दी चेतना
Bahut bhavpurn rachna bahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आदरणीय त्रिपाठी जी एवं डॉ. भावना जी के प्रति हृदय से धन्यवाद , आपके बोल नव लेखन की प्रेरणा हैं |
जवाब देंहटाएं'त्रिवेणी' में स्थान देने के लिए सम्पादक द्वय के प्रति भी हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ |
बहुत ही सुंदर और उम्दा रचनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ज्योत्स्ना जी
मधुरम् मधुरम्
जवाब देंहटाएंवाह, अच्छे भाव पिरोये हैं।
बहुत सुंदर ताँका ज्योत्सना जी। सब एक से बढ़कर एक।
जवाब देंहटाएंमिलने आया
द्युतिमान सूरज
उषा मुस्काए
बैरिन है बदली
झट चुरा ले जाए ..... अनुपम
बहुत सुन्दर लिखा ज्योत्स्ना जी.. .हृदय तल से बधाई !
जवाब देंहटाएंBeautiful
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ताँका हैं सभी...हार्दिक बधाई...|
जवाब देंहटाएंबरखा ऋतु पर बेहतरीन व मधुर ताँका रचनाओं के लिये बहुत बधाई लो । स्नेहाशीष ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्यारा प्यारा ताँका, बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर तांका ज्योत्स्ना जी हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंआदरणीया कृष्णा दीदी , डॉ. जेन्नी जी , विभा दीदी , प्रियंका जी , अनिल जी , ज्योत्स्ना प्रदीप जी , भावना जी , अनिता जी , सत्या जी आपकी प्रेरक उपस्थिति के लिए हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ !
जवाब देंहटाएंइस स्नेह की सदैव कामना के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा
सरस,सुमधुर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका !
जवाब देंहटाएंसादर
ज्योत्स्ना शर्मा