मंगलवार, 24 जुलाई 2018

820-खोले द्वार यूँ



डॉ.कविता भट्ट
1
बाँचो तो मन
नैनों की खिड़की से
पूर्ण प्रेम के
हस्ताक्षर कर दो
प्रथम पृष्ठ पर ।
2
रजनीगंधा
हो सुवासित तुम
अँधेरे में भी,
तुम्हारे अस्तित्व से
जीवन संचार है ।
3
रजत -कण
बिखेरे मेरा मन
मुस्कानों के
प्रिय तेरे आँगन
यों बरसा जीवन ।
4
तुम विवश
हो मेरी मुस्कान- सी
पुण्यसलिला
नहीं छोड़ती धर्म
उदास हो बहती।
5
लौटाने आया
जिसने ली उधार
धूप जाड़े में
कर रहा प्रचार
गर्मी की भरमार ।
6
खोले  द्वार यूँ
बोझिल पलकों से,
नशे में चूर
कदमों के लिए भी,
मंदिर के जैसे ही।
7
टूटना - पीड़ा
उससे भी अधिक
पीड़ादायी है
टूटने-जुड़ने का
विवश सिलसिला ।
8
घृणा ही हो तो
जी सकता है कोई
जीवन अच्छा
किन्तु बुरा है होता
प्रेम का झूठा भ्रम ।
9
तोड़ते नहीं
शीशा, तो क्या करते
सह न सके
दर्द-भरी झुर्रियाँ
किसी का उपहास ।
10
भरी गागर
मेरी आँखों की प्रिय
कुछ कहती,
जीवन पीड़ा सहती
लज्जित, न बहती ।
-0-

21 टिप्‍पणियां:

  1. कथ्य और शिल्प का अद्भूत संगम .....सभी ताँका बहुत ही सुन्दर ...
    पूर्वा शर्मा

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  2. कविता जी की रचनाएँ निरन्तर अपने तक बुलाती हैं।
    बहुत सुंदर


    पूर्ण प्रेम के
    हस्ताक्षर कर दो
    प्रथम पृष्ठ पर ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बेहतरीन लिखा है...मेरी हार्दिक बधाई...|

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही बेहतरीन सृजन
    आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं ।

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  5. सभी ताँका सुंदर उत्कृष्ट सृजन बधाई कविता जी

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  6. अनुभूतिपरक , लीक से हटकर गहन एवं नूतन संवेदना के ताँका. हार्दिक बधाई!

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  7. सुशील जी एवं काम्बोज जी को हार्दिक आभार।

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  8. कबिताजी की कलम दिन प्रतिदिन निखरती हुई सृजन के नए नए रूप दर्शा कर आल्हादित कर रही है
    बहुत बधाई अनुजा

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  9. लाजवाब तांका....कविता जी हार्दिक बधाई।

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  10. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.07.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3344 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  11. बहुत ही सुन्दर सृजन कविता जी .. .बहुत बधाई आपको !

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  12. आपके समस्त ताँका बेहद प्रभावी है,नारी मन की संवेदना और तरलता को प्रकृति के बिम्बों में सजा कर अत्यंत सहजता से व्यक्त किया है।छठवें ताँका ने विशेष प्रभावित किया एक कथा के मर्म को ताँका में पिरो कर नारी नियति को प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।बधाई।
    ----शिवजी श्रीवास्तव।

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    1. हार्दिक आभार डॉ श्रीवास्तव जी, आपने इतना सुन्दर विश्लेषण किया।

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