शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

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1-पिंजरे में चिड़िया
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

क़ैद हो गई
पिंजरे में चिड़िया
भीतर चुप्पी
बाहर अँधियार
मन में ज्वार,
चहचहाना मना
फुदके कैसे
पंजों में बँधी डोरी
भूली उड़ान,
बुलाए आसमान।
ताकते नैन
छटपटाए तन
रोना है मना
रोकती लोक-लाज
गिरवी स्वर,
गीत कैसे  गाएँगे
जीवन सिर्फ
घुटन की कोठरी
आहें न भरें
यूँ ही मर जाएँगे।
चुपके झरे
आकर जीवन में
बनके प्राण
हरसिंगार-प्यार,
लिये कुठार
सगे खड़े हैं द्वार
वे करेंगे  प्रहार
-०-
2- पी के मन भाऊँ 
डॉ.सुरंगमा यादव
1
क्या बन जाऊँ!
जो पी के मन भाऊँ 
सारे सपने
अपने बिसराऊँ 
स्वप्न पिया के
मैं नयन बसाऊँ 
मौन सुमन
सुरभित होकर
कंठ तिहारे
मैं लग इठलाऊँ 
कुहू -सा स्वर
पिया मन आँगन 
कूज सुनाऊँ 
पीर-वेदना सारी
सह मुस्काऊँ 
बनूँ प्रीत चादरा 
पिया के अंग
लग के शरमाऊँ 
और कभी   मैं 
जो जल बन जाऊँ 
अपनी सब
पहचान भुलाऊँ 
रंग उन्हीं के
फिर रँगती जाऊँ 
योगी -सा मन
हो जाए यदि मेरा
सम शीतल
मान -अपमान को
सहती जाऊँ 
जो ऐसी बन जाऊँ 
तब शायद 
पिया के मन भाऊँ 
प्रेम बूँद पा जाऊँ 
-०-
(चित्र गूगल से साभार )

14 टिप्‍पणियां:

  1. BhattSeptember 7, 2018 at 9:22 AM
    आदरणीय काम्बोज जी ने एक विवश छटपटाते मन की व्यथा को अति संवेदित ढंग से मार्मिक शब्द विन्यास में प्रस्तुत किया तथा आदरणीया सुरंगमा जी ने एक प्रेमपूर्ण रचना द्वारा रोमाञ्चित किया। दोनों रचनाकारों को बधाई

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  2. आ.हिमांशु भाई का संवेदनशील सृजन मुझे सदा भाता है ।बहुत सुन्दर । बधाई भाई ।
    सुरंगमा जी के लगाव का बहुत सुन्दर सृजन । बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आ.हिमांशु भाई का संवेदनशील सृजन मुझे सदा भाता है ।बहुत सुन्दर । बधाई भाई ।
    सुरंगमा जी के लगाव का बहुत सुन्दर सृजन । बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय कविता जी और बहन विभा जी ने मेरे सृजन को समझा और सराहा , इसके लिए अनुगृहीत हूँ.

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  5. जहां काम्बोज जी ने पराधीनता का बहुत मार्मिक चित्रण किया ही वहीं सुरंगमा जी ने प्रेमिल भावनाओं को बड़ी सुन्दरता से उकेरा है | बधाई | सुरेन्द्र वर्मा |

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  6. आदरणीय सुरेन्द्र वर्मा जी,कविता जी,विभा जीआप सब के प्रति हृदय तल से आभारी हूँ।
    आदरणीय भाई काम्बोज जी का लेखन भावनाओं को उद्वेलित करने वाला होता है । अति सुंदर ।

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  7. व्थथित मन का मार्मिक चित्रण। बहुत सुंदर,बधाई भैया।
    सुरंगमा जी प्रेम की उत्कंठा लिए सुंदर चोका।बधाई

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  8. बेबसी का मार्मिक चित्रण बेहद सुंदर। बहुत बधाई भाईसाहब।
    प्रेम भावों से सज्जित बहुत सुंदर चोका। सुरंगमा जी बहुत बधाई।

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  9. जब ह्रदय यूँ बेबस महसूस करे, तो जो बेचैनी होती है, उसकी पीड़ा बड़ी भयानक होती है | बहुत सार्थक सृजन आदरणीय काम्बोज जी का...| मेरी हार्दिक बधाई इस मर्मस्पर्शी रचना के लिए |

    आदरणीया सुरंगमा जी, बहुत खूबसूरत लिखा है आपने | मेरी ढेरों बधाई |

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  10. एक उम्दा सृजन पढ़ने का सौभाग्य यूँ ही बना रहे यही मनोकामना है ।नमन आदरणीय सर!! बहुत खूब

    डॉ यादव जी बेहतरीन लेखनी को नमन

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  11. पराधीन आकुल-व्याकुल मन और प्रेम का सरल स्वर लिए दोनों रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं , हार्दिक बधाई !

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  12. आदरणीय काम्बोज जी बहुत ही प्यारी कविता विवशता की छटपटाहट भरी सुन्दर कविता।

    सुरँगमा जी की प्रेम भरी उम्दा कविता,

    आप दोनों को बधाई बहुत - बहुत।

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