उड़ान
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
साँझ हो गई
बन -बन भटकी
भूखी व प्यासी
रूपसी बंजारिन
पिया ! कद्र न जानी।
2
दीप जलाए
अँधियारे पथ में
दिए उजाले,
सदा हाथ जलाए
पाए दिल पे छाले।
3
आँख लगी थी
सुनी हूक प्रिया की
सपना टूटा,
निंदिया ऐसी उड़ी
उम्र भर न आई।
4
आहत मन
अगरू गन्ध रोई
मन्त्र सुबके
उदासी -भरा पर्व
अश्रु का आचमन।
5
प्राण खपाए
बरसों व्रत -पूजा
करके थके
आरती की थाली थी
लात मार पटकी।
6
प्राणों में जो था
उसे पा नहीं सके
द्वार गैर के
कभी जा नहीं सके,
प्रारब्ध में यही लिखा।
7
छलक उठे
रूप -रस -कलश
नदी -सी बही
सींचे निर्मलमना
अभिशप्त ही रही।
8
शिथिल तन
रुदन- भरा कंठ
हिचकी उठी
बीनती बरौनियाँ
उम्र खेत से सिला*।
9
आठों ही याम
कलह -रतजगा
असुर -पाठ
जीवन, मृत्यु-द्वार
भीख माँगते थका।
10
युगों से जगी
थकान- डूबी प्रिया
अंक में सोई
शिशु-सा भोलापन
अलकों में बिखरा।
11
जीवन मिला
साँसों का सौरभ भी
तन में घुला
अधरों से जो पिए
नयनों के चषक।
12
तेरी सिसकी
सन्नाटे को चीरती
बर्छी -सी चुभी
कुछ तो ऐसा करूँ
तेरे दुःख मैं वरूँ।
(20-11-2018)
साँझ हो गई
बन -बन भटकी
भूखी व प्यासी
रूपसी बंजारिन
पिया ! कद्र न जानी।
2
दीप जलाए
अँधियारे पथ में
दिए उजाले,
सदा हाथ जलाए
पाए दिल पे छाले।
3
आँख लगी थी
सुनी हूक प्रिया की
सपना टूटा,
निंदिया ऐसी उड़ी
उम्र भर न आई।
4
आहत मन
अगरू गन्ध रोई
मन्त्र सुबके
उदासी -भरा पर्व
अश्रु का आचमन।
5
प्राण खपाए
बरसों व्रत -पूजा
करके थके
आरती की थाली थी
लात मार पटकी।
6
प्राणों में जो था
उसे पा नहीं सके
द्वार गैर के
कभी जा नहीं सके,
प्रारब्ध में यही लिखा।
7
छलक उठे
रूप -रस -कलश
नदी -सी बही
सींचे निर्मलमना
अभिशप्त ही रही।
8
शिथिल तन
रुदन- भरा कंठ
हिचकी उठी
बीनती बरौनियाँ
उम्र खेत से सिला*।
9
आठों ही याम
कलह -रतजगा
असुर -पाठ
जीवन, मृत्यु-द्वार
भीख माँगते थका।
10
युगों से जगी
थकान- डूबी प्रिया
अंक में सोई
शिशु-सा भोलापन
अलकों में बिखरा।
11
जीवन मिला
साँसों का सौरभ भी
तन में घुला
अधरों से जो पिए
नयनों के चषक।
12
तेरी सिसकी
सन्नाटे को चीरती
बर्छी -सी चुभी
कुछ तो ऐसा करूँ
तेरे दुःख मैं वरूँ।
(20-11-2018)
-0-
*सिला*
फसल कटने के बाद कुछ अन्न बिखर जाता है। उसे सिला कहते हैं। ज़रूरतमंद खेतों में आकर उसे एकत्र कर लेते हैं।
*सिला*
फसल कटने के बाद कुछ अन्न बिखर जाता है। उसे सिला कहते हैं। ज़रूरतमंद खेतों में आकर उसे एकत्र कर लेते हैं।
एक से बढ़ कर एक सुंदर ताँका।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई, सुन्दर ताँका लिखे आपने।
जवाब देंहटाएंगागर में सागर से
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन सर।
जवाब देंहटाएंरत्नाकर दीदी जी,कविता जी,निर्देश और ऋतु जी!आप सबकी सराहना के लिए हृदयतल से आभार!💐💐
जवाब देंहटाएंरामेश्वर काम्बोज
बहुत ही सुंदर , भावपूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई भैया जी
Bahut bhavpurn bahut bahut badhai kamboj ji
जवाब देंहटाएंसत्या शर्मा जी और डॉ भावना जी
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना के लिए अनुगृहीत हूँ।
बहुत सुंदर भावपूर्ण तांका।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई भाईसाहब।
बहुत ही सुन्दर सृजन...,.हार्दिक बधाई आपको !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण तांका।
जवाब देंहटाएंसभी ताँका एक से बढ़कर एक .......अद्भूत...
जवाब देंहटाएंहृदय की गहराइयों से नमन
बहुत ही सुंदर रूपसी बंजारिन
जवाब देंहटाएंसभी ताँका रचनाएं अच्छी लगी।
भावपूर्ण सरस अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई और नमन।
जवाब देंहटाएंकृष्णा जी,ज्योत्स्ना प्रदीप, भावना सक्सैना, पूर्वा शर्मा, अनिता मण्डा , सुरंगमा यादव आप सभी का आभार । रामेश्वर काम्बोज
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।सुरेन्द्र वर्मा।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय वर्मा जी
हटाएंसभी ताँका बेहद सारगर्भित, शब्द एवं भाव का जादू है जो सीधे मन में उतर गया.
जवाब देंहटाएंआहत मन
अगरू गन्ध रोई
मन्त्र सुबके
उदासी -भरा पर्व
अश्रु का आचमन।
हार्दिक बधाई भैया.
आपके आत्मीय शब्दों के बहुत-बहुत आभार बहन जेन्नी शबनम जी ।
जवाब देंहटाएंबढिया
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह सराहनीय .... भावपूर्ण सरस
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , सरस सृजन , हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंअत्यंत सरस, मनोरम, भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंजितनी बार पढो मन ही नहीं भरता |
बस एक ही शब्द बार-बार कहने को जी चाहता है 'वाह'
बहुत मर्मस्पर्शी तांका है सभी...पर ये वाला जाने कैसी हूक उठा गया दिल में...
जवाब देंहटाएंआँख लगी थी
सुनी हूक प्रिया की
सपना टूटा,
निंदिया ऐसी उड़ी
उम्र भर न आई।
इतने सुन्दर सृजन के लिए बहुत सारी बधाई...|