सोमवार, 17 दिसंबर 2018

846-चुप ही है लड़की


चुप ही है लड़की
डॉoकविता भट्ट

स्वयंप्रभा थी
चित्र - गूगल से साभार
सुरम्या थी ,जो कभी
दीपशिखा-सी
मौन है ओढ़े हुए
बुझी रात्रि के
यों शीत तिमिर से
कुछ नमी है
मन के भीतर ही
आँखों की छत
अब भी न टपकी
चुप ही है लड़की...

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर उपमाएँ प्रयुक्त हुई हैं। बधाई कविता जी

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  2. अतिशय सुंदर चोका,बधाई कविता जी।

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  3. वाह ! सुन्दर रचना... हार्दिक बधाई

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  4. बेहद सुंदर चोका, बधाई कविता जी।

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  5. बहुत सुंदर चोका।बधाई कविता जी

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  6. बेहतरीन अभिव्यक्ति एवं उत्कृष्ट रचना

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  7. बहुत ही उम्दा सृजन
    हार्दिक बधाई

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  8. लघुता में भावों की गुरुता अभिनन्दनीय है ।

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  9. आप सभी स्नेहीजन को हार्दिक धन्यवाद।

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  10. कविता जी, बहुत गहरे तक छू गई ये पंक्तियाँ...ख़ास तौर से आखिरी की दो पंक्तियाँ...| ढेरों बधाई...|

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