सोमवार, 24 दिसंबर 2018

848-प्रीत की रीत

डॉ.पूर्वा शर्मा


चित्र गूगल से  साभार
प्रीत की रीत
सदा यही कहती-
मिलन नहीं,
विरह ही जीवन,
अगाध प्रेम
लेकिन हो न सके
श्याम राधा के,
सीता से दूर हुए
पुरुषोत्तम,
मीरा भी पा न सकी
गिरधर को,
मैं पाने चली तुम्हें
भूल ही गई
जग की रीत यही
प्रेमी परिंदे
तपते ही रहे सदा
विरहाग्नि में,
गुरना ही पड़ा   
ईश्वर को भी
इस शूल- पथ से
बिछौड़ा भोगा,
तपकर निखरे
मिसाल बने,
कैसे बचते फिर
हम दोनों भी
इसके चंगुल से,
हम ठहरे
तुच्छ प्रेमी परिंदे,
पार करेंगे
हर कठिनाई को
आसानी से यूँ
मुस्कुराते औ’ गाते,
प्राप्त करेंगे
इस प्रेम पथ पे
इक दूजे का साथ

8 टिप्‍पणियां:

  1. प्राप्त करेंगे
    इस प्रेम पथ पे
    इक दूजे का साथ।सकारात्मक सोच।
    बहुत सुंदर चोका पूर्वा जी

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  2. बहुत सुंदर चोका...हार्दिक बधाई पूर्वा जी !!

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  3. एक प्यारा सा चोका है ये...बहुत बधाई पूर्वा जी...|

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