डॉ.पूर्वा शर्मा
सदा यही कहती-
मिलन नहीं,
विरह ही जीवन,
अगाध प्रेम
लेकिन हो न सके
श्याम राधा के,
सीता से दूर हुए
पुरुषोत्तम,
मीरा भी पा न सकी
गिरधर को,
मैं पाने चली तुम्हें
भूल ही गई
जग की रीत यही
प्रेमी परिंदे
तपते ही रहे सदा
विरहाग्नि में,
गुज़रना ही पड़ा
ईश्वर को भी
इस शूल- पथ से
बिछौड़ा भोगा,
तपकर निखरे
मिसाल बने,
कैसे बचते फिर
हम दोनों भी
इसके चंगुल से,
हम ठहरे
तुच्छ प्रेमी परिंदे,
पार करेंगे
हर कठिनाई को
आसानी से यूँ
मुस्कुराते औ’ गाते,
प्राप्त करेंगे
इस प्रेम पथ पे
इक दूजे का साथ।
प्राप्त करेंगे
जवाब देंहटाएंइस प्रेम पथ पे
इक दूजे का साथ।सकारात्मक सोच।
बहुत सुंदर चोका पूर्वा जी
bahut khub bahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चोका...बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चोका , बधाई !
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जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चोका...हार्दिक बधाई पूर्वा जी !!
बढिया
जवाब देंहटाएंएक प्यारा सा चोका है ये...बहुत बधाई पूर्वा जी...|
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