गुरुवार, 3 जनवरी 2019

850- पुल




डॉ .कविता भट्ट
1
पास में खड़ा
मोटर पुल नया,   
पैदल पुल-
अब चुप-उदास 
था लाया हमें पास

2
बचपन था-
जहाँ झूलता मेरा,
टँगा है मन
ननिहाल के उसी
आम के पेड़ पर
3
जब से बना 
पुल मोटर वाला,
बह रही है
अलकनंदा नदी
अब रुकी-की -सी 
4
वाहन तुम
पुल पर दौड़ते
नदी-सी हूँ मैं
शान्ति से बहती
सब कुछ सहती  
5
मानव नंगा
कैसे पाप धोएगी
काँवर गंगा !
उदारमना शिव
भावे आत्माभिषेक
-0-

13 टिप्‍पणियां:

  1. नदी और पुल के माध्यम से कोमल भावों की सुंदर अभिव्यक्ति के प्रभावी ताँका।बधाई डॉ कविता जी।"-शिवजी श्रीवास्तव।
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    डॉ शिवजी श्रीवास्तव

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  2. सामयिक और उत्तम तांका
    हार्दिक बधाई कविता जी

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  3. पुल...
    सचमुच कितना कुछ कह सकते हैं शब्द अगर उनका संयोजन इतना खूबसूरत हो

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....हार्दिक बधाई कविता जी।

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  5. बहुत खूब....... बहुत ही सुन्दर ताँका....
    कविता जी को हार्दिक बधाई

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  6. सराहनीय सृजन

    वाहन तुम
    पुल पर दौड़ते
    नदी-सी हूँ मैं
    शान्ति से बहती
    सब कुछ सहती
    बेहतरीन तांका

    बधाई कविताजी

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  7. वाहन,पुल और नदी की प्रतीकात्मक योजना ने इस ताँका को नई ऊँचाई प्रदान की है। अन्य ताँका भी बहुत अच्छे हैं। इसी तरह सृजनरत रहें

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  8. उत्तम,सुंदर अभिव्यक्ति।बधाई कविता जी।

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  9. कविता जी का टांका पढकर सुभद्रा कुमारी चौहान की बचपन वाली कविता याद आ गयी | नये मोटर के पुल में ने कितनी स्मृतियाँ याद करा दी| अत्यंत भावुकता से परिपक्त -बचपन को लेकर संग्र्हीय रचना है | मेरी शुभकामनाए आपकी कल्पना शक्ति के लिए | नये वर्ष में आप प्रसाद और महादेवी की श्रेणी में पहुंच जायेंगे | यह मेरा मन कहता है | श्याम -हिंदी चेतना

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  10. स्मृतियों को जीते हुए आज का यथार्थ. सभी ताँका भावपूर्ण, बधाई कविता जी.

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  11. सभी ताँका बहुत ही ख़ूबसूरत.. ..कविता जी को हार्दिक बधाई !!

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  12. सभी तांका बेहद खूबसूरत हैं, पर यह वाला बहुत भाया...
    बचपन था-
    जहाँ झूलता मेरा,
    टँगा है मन
    ननिहाल के उसी
    आम के पेड़ पर।
    मेरी हार्दिक बधाई...|

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