डॉ जेन्नी शबनम
वक्त की गति
करती निर्धारित
मन की दशा
हो मन प्रफुल्लित
वक़्त भागता
सूर्य की किरणों-सा
मनमौजी-सा
पकड़ में न आता
मन में पीर
अगर बस जाए
बीतता नहीं
वक़्त थम-सा जाता
जैसे जमा हो
हिमालय पे हिम
कठोरता से
पिघलना न चाहे,
वक़्त सजाता
तोहफ़ों से ज़िन्दगी
निर्ममता से
कभी देता है सज़ा
बिना कुसूर
वक़्त है बलवान
उसकी मर्ज़ी
जिधर ले के चले
जाना ही होता
बिना किए सवाल
बिना दिए जवाब!
-0-मन की दशा
हो मन प्रफुल्लित
वक़्त भागता
सूर्य की किरणों-सा
मनमौजी-सा
पकड़ में न आता
मन में पीर
अगर बस जाए
बीतता नहीं
वक़्त थम-सा जाता
जैसे जमा हो
हिमालय पे हिम
कठोरता से
पिघलना न चाहे,
वक़्त सजाता
तोहफ़ों से ज़िन्दगी
निर्ममता से
कभी देता है सज़ा
बिना कुसूर
वक़्त है बलवान
उसकी मर्ज़ी
जिधर ले के चले
जाना ही होता
बिना किए सवाल
बिना दिए जवाब!
दार्शनिकता का पुट लिए बहुत सुंदर चोका।
जवाब देंहटाएंबहुत सच्ची बात कही है आपने...| इस बेहतरीन चोका के लिए बहुत बधाई...|
जवाब देंहटाएंवक्त की महत्ता को बयाँ करता सुंदर चोका... जेन्नी जी बधाई
जवाब देंहटाएंवक़्त की महिमा बताता सुंदर चोका... बधाई जेन्नी जी।
जवाब देंहटाएंवक़्त के प्रति मेरी भावना को आप सभी की सराहना मिली, हृदय से आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चोका, हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चोका, हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंBest
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हटाएंबहुत प्यारा चोका, हार्दिक बधाई जेन्नी जी !