शशि पाधा
1
चुप थी मैं भी
और मौन तुम भी
तुम्हारा स्पर्श
कुछ पिघला गया
मौन मुखर हुआ।
2
मेघा गरजे
गाने लगी बदली
राग
मल्हार
शाख- शाख पी रही
रिमझिम
फुहार।
3
आज भोर ने
घबराते-लजाते
ओढ़ ली धूप
मौसम गुनगुनाया
स्वर्ण सौगात लाया ।
4
शांत झील में
तैरना चाँदनी का
या कोई गीत
पहाड़ में गूँजना
सौन्दर्य-इन्द्रजाल।
रहूँ ,न रहूँ
फर्क नहीं पड़ता
क्या किया मैंने
वही है मेरा नाम
वही पहचान भी।
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मधुर महकती रचनाएँ
जवाब देंहटाएंताजगी लिए हुए सुंदर तांका।बधाई शशि जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचनाएँ, बधाई शशि जी।
जवाब देंहटाएंशाख शाख पी रही.... कितनी बार पढ़ चुकी.... प्यास ही नही बुझ रही.....अति सुंदर।
जवाब देंहटाएंBahut sunder likha hai badhayi bahut badhayi
जवाब देंहटाएंRachana
मौन मुखर हुआ और राग मल्हार गूंज उठे .....
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएँ , बधाई ।
बहुत सुन्दर रचनाएँ ।बधाई आपको ।
जवाब देंहटाएंमनभावन रचनाएँ ... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत मनमोहक रचनाएँ ....हार्दिक बधाई आद. शशि जी !!
जवाब देंहटाएंशशि जी वर्षा ऋतु के भीगे भीगे हाइकु ।सुखद ।बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारे ताँका! हार्दिक बधाई शशि दीदी!
जवाब देंहटाएं~सादर
अनिता ललित
बहुत बढ़िया रचना शशि जी हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ताँका...बधाई शशि जी।
जवाब देंहटाएंप्यारे ताँका के लिए बहुत बधाई शशि जी
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