कमला निखुर्पा
ढूँढे बहिन
भैया की कलाइयाँ
नेह की डोर
बाँधती चहूँ ओर
छूटा पीहर
बसा भाई विदेश
सूना है देश
आओ घटा पुकारे
राह निहारे
गाँव की ये गलियाँ
नीम की छैयाँ
गर्म चूल्हे की रोटी
गागर-जल
आँगन की गौरैया
बहना तेरी
लगे सबसे न्यारी
सोनचिरैया
पुकारे भैया-भैया !!
सज-धजके
रँगी चूनर लहरा
घर भर में
पैंजनिया छनका
बिजुरी बन
रोली-तिलक
माथे लगा अक्षत
भाई दुलारे
डबडबाए नैन
छलक जाए
पाके एक झलक
जिए युगों तलक !!!
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बेहद ख़ूबसूरत
जवाब देंहटाएंसुन्दर, अति सुंदर!
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंमन भर आया, बहुत सुंदर!
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जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण सुंदर चोका है |
पुष्पा मेहरा
बहुत मनभावन चोका है आदरणीय कमला जी।
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन की बधाई, शुभकामनाएँ ।
बहुत मनभावन चोका है आदरणीय कमला जी।
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन की बधाई, शुभकामनाएँ ।
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, मन को छू गया।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब कमल जी!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सभी का
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण चोका।बधाई कमला जी।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण, बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत ही सुंदर , भावपूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण और सुंदर...बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंअति सुंदर,भावपूर्ण सृजन.....बधाई कमला जी!!
जवाब देंहटाएंमन को छू गया चोका, बहुत बधाई कमला जी.
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