बुधवार, 21 अगस्त 2019

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चित्रांकन; प्रीति अग्रवाल
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
सांध्य गगन
या उतरा आँगन
कुसुमित यौवन,
रूप तुम्हारा
बहता छल-छल
ज्यों निर्झर चंचल।
2
अधर खिले
पिया मदिर मधु
जगे जड़-चेतन,
अँगड़ाई ले
बहा मन्द पवन
सिंचित तन-मन।
-0-

12 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर निर्मल से सेदोका।
    बधाई।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.8.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3435 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  3. अति सुंदर प्रकृति चित्रण ! सारगर्भित विचार ! हिमांशु जी बधाई ! श्याम हिंदी चेतना

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  4. बहुत सुंदर सृजन... हार्दिक बधाई आपको।

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  5. सुंदर सृजन! हार्दिक बधाई आ. भैया जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  6. भाई साहब बड़ा ही मनमोहक संध्या वर्णन। आपको बधाई!

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  7. बहुत सुंदर सृजन....हार्दिक बधाई आ.भैया जी!

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  8. दोनों रचनाएँ बहुत सुन्दर, बधाई भैया.

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  9. मनभावन सेदोका के लिए आदरणीय काम्बोज जी को बहुत बधाई

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