रविवार, 22 सितंबर 2019

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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
मन उन्मन
तरसे आलिंगन
कहाँ खो गए
अब चले भी आओ
परदेसी हो गए !!
2
आकर लौटे
बन्द द्वार था मिला
भाग्य की बात,
दर्द मिले मुफ़्त में
प्यार माँगे न मिले।
3
टूटते कहाँ
लौहपाश जकड़े
मन व प्राण
मिलता कहाँ मन
जग निर्जन वन।
-0-

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सृजन... परदेसी हो गए, दर्द मिले मुफ़्त में,जग निर्जन वन ... बहुत मनभावन
    हार्दिक शुभकामनाएँ सर

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  2. वेदना की अभिव्यक्ति के सशक्त ताँका,हार्दिक बधाई।प्रणाम।

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  3. शानदार सृजन।
    "मिलता कहाँ मन"
    काश की मन का भी जोड़ा बनाया होता।


    पधारें अंदाजे-बयाँ कोई और

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  5. जो चले गये
    कहां लौटते हैं वो
    एक उम्मीद
    जीने को ही है काफी
    प्रेमपाश के लिए!! (डॉ पूर्णिमा राय)

    आदरणीय सर नमन
    हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति!!

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।अत्युत्तम

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  7. जीवन के अनेक रंग, बहुत भावपूर्ण और मार्मिक चित्रण भाई साहब!

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  8. हृदयस्पर्शी तांका... हार्दिक बधाई भाईसाहब।

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  9. बहुत सुन्दर सृजन काम्बोज जी हार्दिक बधाई |

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  10. बहुत सुंदर ताँका आदरणीय रामेश्वर सर... प्रेम और पीड़ा का संगम अद्भुत है

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  11. बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण सृजन ....बहुत बधाई भैया जी!!

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