रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
मन उन्मन
तरसे आलिंगन
कहाँ खो गए
अब चले भी आओ
परदेसी हो गए !!
2
आकर लौटे
बन्द द्वार था मिला
भाग्य की बात,
दर्द मिले मुफ़्त में
प्यार माँगे न मिले।
3
टूटते कहाँ
लौहपाश जकड़े
मन व प्राण
मिलता कहाँ मन
जग निर्जन वन।
मन उन्मन
तरसे आलिंगन
कहाँ खो गए
अब चले भी आओ
परदेसी हो गए !!
2
आकर लौटे
बन्द द्वार था मिला
भाग्य की बात,
दर्द मिले मुफ़्त में
प्यार माँगे न मिले।
3
टूटते कहाँ
लौहपाश जकड़े
मन व प्राण
मिलता कहाँ मन
जग निर्जन वन।
-0-
सुंदर सृजन... परदेसी हो गए, दर्द मिले मुफ़्त में,जग निर्जन वन ... बहुत मनभावन
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएँ सर
वेदना की अभिव्यक्ति के सशक्त ताँका,हार्दिक बधाई।प्रणाम।
जवाब देंहटाएंशानदार सृजन।
जवाब देंहटाएं"मिलता कहाँ मन"
काश की मन का भी जोड़ा बनाया होता।
पधारें अंदाजे-बयाँ कोई और
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जवाब देंहटाएंजो चले गये
जवाब देंहटाएंकहां लौटते हैं वो
एक उम्मीद
जीने को ही है काफी
प्रेमपाश के लिए!! (डॉ पूर्णिमा राय)
आदरणीय सर नमन
हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति!!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।अत्युत्तम
जवाब देंहटाएंसबका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंजीवन के अनेक रंग, बहुत भावपूर्ण और मार्मिक चित्रण भाई साहब!
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण ।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी तांका... हार्दिक बधाई भाईसाहब।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन काम्बोज जी हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ताँका आदरणीय रामेश्वर सर... प्रेम और पीड़ा का संगम अद्भुत है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण सृजन ....बहुत बधाई भैया जी!!
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