शुक्रवार, 26 जून 2020

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बेंच की पीठ
डॉ.पूर्वा शर्मा
          इस बार गर्मी की छुट्टियाँ समय से पहले ही आरंभ हो गई और अब खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही । कितना सूना-सूना लग रहा है पूरा स्कूल परिसर, मेरा तो मन ही नहीं लग रहा । कक्षा में रखी एक कुर्सी ने इतना कहकर अपना मुँह लटका लिया । उसे उदास देख ब्लैक बोर्ड ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा - अरे यूँ तो मुझे अच्छा नहीं लगता कि सब मुझ पर दिनभर चाक रगड़ते रहें,  पर हाँ ! इस बार तो मैं भी अकेला महसूस कर रहा हूँ । इससे अच्छा तो वहीं था जब सब मुझे चीरते रहते थे । कोने में पड़ा कचरे का डिब्बा जो आम दिनों में हरदम पेंसिल के छिलकों, टूटे पेन की निब/ रीफिल एवं काग़ज़ों के टुकड़ों आदि से खचाखच भरा रहता था, उसने झाँकते हुए अपने खाली पेंदे को ध्यान से देखा । लाट एवं पंखे चालू-बंद करने वाला स्विच वाला बोर्ड तो जैसे रोनी-सी शक्ल लेकर दीवार के सहारे खड़ा था, उसकी खटकों की आवाज़ सुनने के लिए तो कई बार बच्चे झगड़ पड़ते थे । उस रेग्युलेटर का कान मरोड़ने में तो सब माहिर थे, पर आज उस पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा । सब एक दूसरे का मुँह ताकते लगे फिर सभी कक्षा के बाहर झाँकने लगे । बाहर का वातावरण भी कुछ खास नहीं था ; बास्केट बॉल कोर्ट, म्यूजिक-डांस रूम, लेब, खेल का मैदान, बगीचे के खाली झूले आदि को देखकर सभी को ऐसा लगा , मानो पृथ्वी पर प्रलय आया हो और सब कुछ खत्म हो गया हो । कहीं कोई हलचल नहीं, कोई शोर नहीं और कहीं पर भी वो ............नन्हे शैतान भी नहीं । इतने में इस सूनेपन को तोड़ते हुए और अपनी अकड़ी पीठ सीधी करते हुए बेंच ने बोला – पता नहीं इस कोरोना के चक्कर में न जाने और कितने दिन यूँ ही बीतेंगे......
     बंद है स्कूल
    कौन थपथपाए ?
   बेंच की पीठ


14 टिप्‍पणियां:

  1. पूर्वा शर्मा जी का व्यथापूर्ण लेख इस देवी प्रकोप के उपलक्ष्य अत्यंत मार्मिक औरर पीड़ाजनक है | रोगटे खड़े करनेवाला है |
    हृदय स्पर्शी शब्दों को पढकर इन बेजान और जान वाली चीज़ों के प्रति सहानुभूति और संवेदना होती है |किन्तु विवश है मानव | बहुत ही सामयिक और उपुक्त -श्याम -हिन्दी चेतना

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  2. बहुत खूब।बेजान वस्तुओं की मनोस्थिति का सटीक और सुंदर चित्रण ।बधाई पूर्वा जी।

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  3. वाह, सुंदर कल्पना, बहुत ख़ूब!!

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  4. बहुत ही भावपूर्ण
    बधाई पूर्वा जी

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  5. भावपूर्ण भी और रोचक भी, बहुत आनन्द आया, आपको बधाई पूर्वा जी!

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  6. बहुत सुन्दर और रोचक कल्पना है।बेजान चीजों के माध्यम से आपने मानव मन की व्यथा, चिंता,निराशा को बखूबी उकेरा है ।आज हर व्यक्ति यही सोचता है कि जाने कब आयेंगे वे दिन। बधाई पूर्वा जी।

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  7. अद्भुत परिकल्पना जो वस्तु कक्षा में, स्कूल में हमें निर्जीव लगते थे उसमें आपसी वार्ता से आपने प्राण फूँक दिए ।
    बधाई । हाइबन की दुनिया में स्वागत है ।

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  8. पूर्वाजी ने स्कूल की एक एक वस्तु में अपने भावों से जान डाल दी है बहुत मार्मिक व्यथा बन गयी है बिन प्राण वाली चीज़ों में प्राण प्रस्तुत किये हैं बहुत बहुत बधाई |

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  9. सचमुच! बिना बच्चों के स्कूल कैसा सूना-सूना हो जाता है! बहुत सुंदर चित्रण डॉ. पूर्वा जी! हार्दिक बधाई!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  10. मेरे हाइबन को स्थान देने के लिए काम्बोज सर का धन्यवाद ।

    आप सभी की अमूल्य टिप्पणियों के लिए सभी को नमन एवं बहुत बहुत धन्यवाद ।

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  11. बहुत भावपूर्ण चित्रण,मानवीकरण का सुंदर उदाहरण है ये हाइबन,कोरोना के कोप ने मानव को तो अकेला किया ही है,वे उपादान भी व्यथित हैं जिन्हें हम बेजान समझते हैं,पूर्वा जी ने उन वस्तुओं से तादात्म्य स्थापित किया जिन्हें हम समझ नहीं पाते,कल्पना शक्ति के द्वारा वर्तमान संकट का नए दृष्टिकोण से अध्ययन हेतु पूर्वा जी को बधाई।

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  12. अद्भुद शब्दावली एवं भावमय करता सृजन, ब्लैक बोर्ड की चुप्पी का टूटना और बेंच की अकड़ी हुई पीठ की व्यथा निःशब्द .... बहुत बहुत बधाई आपको।

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  13. बहुत भावपूर्ण सृजन पूर्वा जी... हृदय-तल से बधाई आपको !

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