ज्योत्स्ना प्रदीप
1
आलोकित करती है
छवि रघुनंदन की
मन मोहित करती है ।
2
जयघोष सभी करते
जब -जब पाप बढ़ा
तुम रूप नया धरते ॥
3
रावण को मारा था
विजय दिवस की जय
धरती को तारा था।
4
इस दिन का मान करो
विजय धरम की है
रघुवर का ध्यान करो।
5
जग फिर से दुखियारा
राघव आ जाओ
कर दो फिर उजियारा ।
पीड़ा में हर सीता
जो जितना पावन
दुख जीवन में बीता!
7
जग बहुत दुखी, रोगी
रघुवर अब आओ
घायल साधू,जोगी।
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विजयदशमी पर्व पर प्रभु श्री राम की महत्ता को बतलाते हुए दुःखों से मुक्ति हेतु उनका आवाहन करते सुंदर माहिया।बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी।
जवाब देंहटाएंश्रीराम की महिमा का गुणगान करते हुए बहुत सुंदर माहिया।प्रभु राम का नाम ही हमें दुखों से मुक्ति दिला सकता हैं।बहुत बहुत बधाई ज्योत्सना जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंज्योत्स्ना जी , कितने सुंदर,संगीतमय माहिया रचे हैं आपने, मन खुश हो गया पढ़कर....पीड़ा में हर सीता..!!आपको अनेकों बधाई, एवम शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंमेरे माहिया को यहाँ स्थान देने के लिए आदरणीय भैया जी और प्यारी बहन हरदीप जी का हृदय-तल से आभार करती हूँ।आदरणीय शिवजी,आदरणीया रत्नाकर दीदी,महिमा जी और प्रीति जी का भी हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंअच्छे माहिया की बधाई , विजयादशमी का चित्र उभर आया ।
जवाब देंहटाएंश्री राम को समर्पित सुन्दर माहिया।बहुत-बहुत बधाई ।
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जवाब देंहटाएंविजयदशमी पर लिखे गये परम पिता से दुखों -नई-नई अनंत पीड़ाओं का अंत करने की प्रार्थना करते सुंदर भाव प्रधान हाइकु के लिए ज्योत्स्ना जी आपको ढेरों बधाई
पुष्पा मेहरा
अति सुंदर महिये
जवाब देंहटाएंसुंदर माहिया ...हार्दिक बधाइयाँ ज्योत्स्ना जी
जवाब देंहटाएंविजयादशमी के पर्व के उपलक्ष्य में कहे गये सार्थक माहिया के लिये बधाई ।
जवाब देंहटाएंमेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आप सभी का हृदय से आभार!
जवाब देंहटाएंभक्तिभाव से ओतप्रोत इन सुन्दर माहिया के लिए मेरी बहुत बधाई
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